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(५) प्रश्न - हे क्षमावीर - आपके नगरीकों उपद्रव्य करनेवाले तस्कर चौर लुटेरा बटपाडा दगाबाज आदि अनेक है उन्होंकों अपने इनामे कर फोर योग लेना ?
(उत्तर) हे भव्य-संसारकी उल्टी चाल है जो भाव चौर (विषयकषाय ) है उन्हीकों तों निज धन चौराने में साहिता करतें है और जो द्रव्य चौरकि अपनि वस्तुवकों नहीं चौरानेवाल हैं उन्हीको पकड केदकर देते है परन्तु म्है एसा नही हू कि जो चौर नही है उन्हीकों पकडने में मेरा अमूल्य समय खोदुं म्है तों मेरे असली मालके चौरानेवाले ( विषय कषाय) चौरोंकों मेरे अधिन कर लिया है अब मेरा धन चाहे चाडेचौकमें क्यु न पडा रहै मुजे भय है ही नहीं अर्थात् निर्भय होके मेरा धनका रक्षण करता हूं।
(६) प्रश्न- आत्मवीर - आपके वैरी भूमि या अन्य राजा को कि अबी तक आपकि आज्ञा नही मानि है आपको नमस्कार नही कीया है उन्हीकों सग्राम द्वारा पराजय कर अपने अधि बनाके फीर दीक्षालो तांके पीछे आपके पुत्रादिको कोई तरह कि तकलीफ न हो ?
( उ० ) है रौद्राक्ष धारक - जो हजारकों हजार गुण करनेसे दशलक्ष होते है इतने सुभटोंकों पराजय करलेना दुष्कर नहीं है: परन्तु एक अपनि आत्मापर विजय करना बहुत ही दुष्कर है जिन्ही पुरुषोंने एक आत्माको जीतली हो तो फीर दूसरोंके लिये सग्राम करने कि क्या जरूरत है मैंनेखों ज्ञान आत्मासे अनाकों भगा दीया है और दर्शनात्मा से मोड़ोकों अपने कब्जे कर लिया: