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घीयताकी पाणच, सत्यताका कवच, (शस्त्र ) अप्रमाद रूपी गन्धहस्ती, ज्ञान रूपी अश्व, अष्टादश शिलांगरथ धारी युक्त रख, अध्यवशाय अन्तःकरण भावना रूपी बाणोंसे भरा हुवे रथोंको देखके कोई भी दुस्मन मेरे पास नहीं आशक्ता है । हे भूऋषि मोहनरेन्द्रकि शैन्याको चकचुरकरदी है तो अब कोनसा दुस्मन मेर रहा है ! हे भूऋषि असार संसारके अस्थर पदार्थोके लिये सम्राम करनेको मुनि हमेशा दुर ही रहते है परन्तु भाव सग्राम कर्म शत्रुवोंको पराजय करनेके लिये हमेशा तैयार रहते हैं ।
. (४) प्रश्न-हे जितेन्द्र-इस दुनियोंके अंदर एक समान्य मनुष्य भी अपने जीवन में एकेक नाम्बरीके कार्य करते है तो आप तो महान् राजेश्वर हो वास्ते आपको इस अक्षय पृथ्वीपर अच्छा सुंदर सीखर बंध झाली झरोखे वाला प्रासाद (म्हेल) मोकि आपके पुत्रादिके क्रीडा करने योग्य एसा मकान बानके एक बड़ा भारी नाम कर । हे क्षत्री फोर आपकों दीक्षा लेना उचित है ? . (उ०) हे ब्रह्मदेव-जिन्होंको रस्तेमें ठेरना हो वह मकान कराते है म्हैतो इन्ही मकानोंको छोडा है और इच्छित मकान (मोक्ष-शिव मंदिर ) में जाके ठेरूगा, हे ब्रह्मण मकान बनानेसे ही नाम्वरि नहीं होती है यह तो बाल क्रीडावत् मकान और नाम्बरी है परन्तु जो मकान और नाम्बरी अक्षय है उन्होंको माम करनेकि कोषीस करना यह वडी भारी नाम्बरी है वास्ते मुजे मकान बनानेकि ज़रूरत नहीं है मेरे तो इच्छित मकान बना हुवा तैयार है वहा ही नाके म्है ठेरूंगा।