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(३१) उत्तम है कारण शेवाश्रमको आधारभूत है तो गृहस्थाश्रम ही है। परन्तु गृहस्थाश्रमका निर्वाह करना बड़ा ही दुष्कर है कायर पुरु'पोंसे गृहस्थाश्रम चलना बड़ा ही मुशकल है गृहस्थाश्रमें तों
सूरवीर धीर पुरुषोंसे ही चल शक्ता है। हे नरनाथ दीक्षा तों प्रगट ही कायरता बसला रही है कि भिक्षावृतिसे आनीवत्र करना इतना ही नही बल्के कृषांनी लोकोंकों भी निंद्या करनेयोग है वास्ते तुमारे जेसा वीर पुरुषोंकों तो गृहस्थाश्रम हीमें रहेके पौषद आदि करना योग्य है ?
(उत्तर) हे ऋघि गृहस्थाश्रम हे वह सर्व सावद्य ( पाप वैपार सहित ) है और जिन्होंकि यह श्रद्धा है कि दीक्षासेमी गृहस्थाश्रम अच्छा है उन्होंको जो गृहस्थाश्रममें रेहकर मासमासोपवाप्त करके कुषाम भाग उतना भोजन करते हुवे भी 'संयम के शीलमें भागमे नही आशके हैं कारण संयम निर्वद्य है और गृहस्थाश्रम सावध है वास्ते वीर पुरुषोंकों संयम ही स्वीकार करने योग्य है और मोक्षरूपी फलका दातार ही संयम है नकि गृहस्थाश्रम ।
(९) प्रश्न-हे नराधिप-अगर आपकों दीक्षा ही लेना हो तो पेस्तर आपके खनांनामे मणिमाणक मौकाफल चन्द्रक्रन्तामणि
सी तांबा पीतल वस्त्रमूषण और शैन्यके अन्दर गन सच सुमट मावि सर्व मजबुत भरके फीर दीक्षा लो। .......... ... (उचर) हे लोमानन्द-इन्ही मणिभोक्ता फलादिसे कीसी प्रकारकि तृप्ती नही होती है जेसे कीसी अमी- मनुष्यको एक