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(२१) उत्पन्न-सर्व प्राण भूत जीव सत्व भुवनपति दवों देवी पणे पूर्व अनन्ति अनन्तिवार उत्पन्न हवे अर्थात देव होनपर भी जीवकी कुच्छ भी गरज सर नही वास्ते ज्ञानाधमकर आत्माको अमर बनानी चाहिये इति.
सेवभंते सेवभंते-तमेवसञ्चम् .
थोकडा नं. ४
वहृत सूत्रसे संग्रह.
(व्यंतर देवों के द्वार २१ )
१० नामहार (८) चन्हद्वार (१५) वैक्रयद्वार २) वासाद्वार (द) इन्द्रद्वार (१६) अवधिद्वार ३) नगरद्वार ११०) मामानीक देव (१७) परिचारणा १४) राजधानी (११) आत्मरक्षक (१८) सुखद्वार ५) सभाद्वार (१२) परिषदाद्वार (१६) सिद्धद्वार