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६) वर्णद्वार । ७) त्रसद्वार
(१३) देवीद्वार (१४) अनिकाहार
(२०) भवद्वार (२१) उत्पन्नद्वार
(१) नामद्वार-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षम. किंनर, किंपुरष, मोहग, गभर्व, प्राणपुन्य, पाणपुन्ये इशीवाइ. भुवाइ कंडे. महाकंडे, कोहंड, पयंगदेवा, इति.
(२) वासाद्वार-व्यंतर देव काहापर रहते है ? यह रत्नप्रभा नरक जो १८०००० जोजनकी जाडपणावाली है जिस्म एकहजार उपर और एकहजार निच छोडनेमे मध्यमे १७८००० जोजन रहेती है इस्मे उपर जो एकहजार जोजनका पण्ड था उन्हीको एकसो जोजन उपर और एकमो जोजन निचे छेड देनासे मध्य ८०० जोजनका पण्ड है इन्हीके अन्दर जांणमित्र आठ जातका देवता निवास करते हैं यथा पिशाच यावत् गंधर्व और जो उपर १०० जोजनका पण्ड था जिम्म १० जोजन उपर और दश जोजन निचे छेडकर मध्यम ८० जोजनका पण्ड है जिम्भे आठ जताका व्यंतर देव निवास
करते है.
(३) नगरद्वार-दुसरेहारमें बताये हुवे स्थानमे तीरच्छा लोकमे बाणमित्र और व्यंतर देवतोंके असंख्याते नगर है वह