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(१७) परिचारण-भुवनपति देवोंके परिचारणा (मैथुन पांच प्रकारकी है यथा मनपरिचारणा रूप० शब्द. स्पर्श कायपचारण-मनुष्यकी माफीक देवांगनाके साथ भोगविलाश करे इति. देखो परिचारणापद.
(१८) वैक्रयद्वार-चमरेन्द्र वैक्रयकर भुवनपति देवदेवीसे सम्पुरण जम्बुद्वीप भरदे असंख्यातेकी शक्ति है एवं समानिक लोकपाल तावतीसका ओर देवी परन्तु लोकपाल देवीकी शक्ति संख्यातेद्विपकी है एवं बलेन्द्र परन्तु एक जम्बु. द्विप साधिक समझना शेष १८ इन्द्र एक जम्बुद्विप भरे ओर सबके संख्यातेद्विपकी शक्ति है देवतोंके वैक्रयका काल उ. १५ दिनका है.
(१६) अवधिद्वार-असुरकुमारके देवता अवधिज्ञानम ज० २५ जोजन उ० उर्ध्व सौधर्म देवलोक अघो० तीसरी नरक तीर्य असंख्याते द्वीप समुद्र शेष ह देव उ० उर्च जोतीपीयोंके उपरका तला अघो० पेहला नरक तीर्य संख्यातद्विप समुद्र देखे.
(२०) सिद्धद्वार-भुवनपतियोंमे निकल मनुष्य हो के एक समयमे १० जीवमोक्ष जावे देवीसे निकलके एक समय ५ जीव मोक्ष जावे.