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[६०] स्पर्शपरिचारण वाले देवों कि इच्छा होते ही देवी द्रव्य मनोहर रूप श्रृंगारकर पूर्ववत् तीजे चोथे देवलोकमें अपने स्वाद देवोंकी सेवामें हानर होती है वह देवता देवीके स्तनादिसे स्पर्क करतो ही कामसे शान्ती हो जाते है । देवताके वीर्यका पुद्गलदेवीके १७ बोलपणे परिणमते है अर्थात् हस्तादि स्पर्शसे देव देवीको शान्तपाण होता है।
रुप परिचारण वाला देवोंको इच्छा होते ही देवी द्रव्य मनो हर रूप वैक्रय अतित सुन्दराकार बनाके पांचवे छठे देवलोकके देवों पासे हाजर होती है वह देव उन्ही देवीका रूप देखतोही मनको शान्त कर लेते है । देवके वीर्यके पुद्गल देवीके १७ बोल पण परिणमते है। ___शब्द परिचारणा वाला देवोंकी इच्छा होते ही देवी वैक्रयसे मनोहर वैक्रय बनाके सातवा आठवा देवलोकके देवोंकी सेवामें हाजर होती है वहांपर अति मनोहर कण्ठ सुस्वर अर्थात् पञ्चम स्वरसे इस कदरका ग्यान करे कि वह कामोतुर देव उन्ही देवीका शब्द सुनते ही कामसे शान्त हो जाते हैं । देक्के वीर्यका पुद्गल देवीके १७ बोल पणे परिणमते है। ___ मनपरिचारणा-वालेके काम इच्छा होते ही देवीयों पेहला दूसरे देवलोकमें उन्हीं देवोंके सदिशा उभी रहे के अपना द्रव्य मनसे ही देवतावोंकी कामाग्निकों मन हीसे शान्त कर देती है । देवता देवीके मन मीलनेसे देवतोंकी शान्तपणा होते ही उन्होंका वीर्यका पुद्गललों बहासे छूटते है वह असंख्याते योजनके