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[५९] (२) स्पर्श परिचारण हस्तादिसेस्वामि तीजा चोथा देव बोलके देव।
(३) रूप परिचारणा-स्वामि पांचवा छठा देवलोकके देव । (४) शब्द परिचारणा-स्वामि सातवा आठवा दे० देव ।
(५) मन-परिचारणा स्वामि-नव-दश इग्यारवा बारहवा १. देव, शेष नौग्रीवैग वा पांचाणुत्तर वैमानका देव अपरिचारणा
- परिचारणा-जब देवतावोंको काय परिचारणाकि इच्छा होती है तब देव मनसे देवीकों स्मरण करते ही देवीका अंग कुरुकता है या आसनसे कुच्छ संकेत होनासे देवीको ज्ञान होता है कि मेरा मालीक देव मुजे याद करते है यह देवी उसी समय उत्तर वैक्रयसे अच्छा मनोहर द्रव्य शृगार कर देवके पास हाजर होती है तब वह कामातुर देव उन्हीं देवीके साथ मनुष्यकी माफीक काय परिचरणा ( मैथून ) सेवन करते है। ..
(प्र) हे स्वामिन् उन्हीं देवतावोंके वीर्यके पुद्गल है।
(उ) देवतोंके वीर्य है किन्तु मनुष्योंके जो गर्भ धारण वीर्य है वैसा देवोंके नहीं है परन्तु काम शान्त वीर्य देवतोंके है वह वीर्य देवीके श्रोत्तेन्द्रि चक्षुइन्द्रिय घणेन्द्रिय रसैन्द्रिय स्पशेन्द्रिय इन्हीं पांचों इन्द्रयपणे या मनपणे इष्टपणे मनोज्ञपणे विशेष मनो. ज्ञपणे शुभ शोभाग्य रुप योबन गुण(विषय) लावण्य कन्दर्प इन्हीं १७. बोलोपणे वारवार परिणमता है अर्थात् देवी देवताकोंको उन्हीं समय कामसे शान्ती होती है ।