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[२९] लेश्याको पर्पर बदलानेसे ३६ भांगा होता है। यह द्रव्य उदयाका पलटण सभाव है वह औदारीक शरीरवाले १० दंडकके लिये है परन्तु नारक' देवतों: १४ दण्डकके लिये नहीं है कारण नारको देवतोंके द्रव्य लेश्या भव प्रत्य होती है अध्यवशाकी प्रेरण से माव लेश्या परिणाम रूपमे तफावत होती है परन्तु वर्ण गन्ध रस म्पर्श रुप जो पुदल है वह नहीं बदलने है हां पहलोंमे तीव्र मन्दता गुण होता है परन्तु तसे नहीं बदलने है। जैसे मणि रत्नके अंदर जेसा रङ्गक तागा पोया जाय वैमा ही रङ्ग कि प्रभा उन्हीं मणिके अन्दर भापमान होगा परन्तु मणि आप का स्वरूपको कवी नही छे डेगा.
(२) वर्ण द्वार-लेश्याके प्रेग्णाने युगल एकत्र होता है उन्ही पुद्गलोंके अंदर वर्णादि होते है ।
(१) कण लेश्याका श्याम का मेलमा वर्ण है. (२) निल ० का निला शुक शंखवान निला वर्ण है । (३) कापोत० का पारेवाको गोवा जेसा वर्ण है (४) तेनो० हींगलुके माफिक लाल वर्ण है (५) पद्म ० हलदिके माफिक पेत वर्ण है । (६) शुक्ल मोक्ताफरके हार माफिक श्वेत वर्ण है
(३) गन्द धार-कृष्ण : निल कपोतः इन्हें तीनो वेश्याका गंध से मृत्यु सर्प धान खर नर इत्यादि इन्होंटे ही अधिक दुर्गन्ध होते है और जो पद्म शुक्ल इन्ही तीनों लेश्याकी अच्छी सुगन्ध पदार्थ जेसे कोष्ट चम्पा चम्पेली जाइ पौगरादिसे भी अधिक सुगन्ध है।