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थोकड़ा नं०५ सत्र श्री पन्नवणाजी उ०४
(लेश्याद्वार १५) (१) परिणामद्वार (२) वर्णद्वार (4) गन्धद्वार (४) रसस्पर्शहार (५) शुद्धद्वार (६) प्रशस्थ० (७) संक्लष्ट० (८) शीतोग. (९) गतिद्वार (१०) परिणाम ० (११) प्रदेश ० (१२) अवगाहा (१३) वर्गणा ० (१४) स्थान० (१५) अल्पाबहु ० ।
(प्र) लेश्या कितने प्रकारकि है ।
(उ, लेश्या छे प्रकारकी है यथा-(१) कृष्ण लेश्या ० (२) निल लेश्या (३, कापोत लेश्या ० (४, ने नो लेश्या (५) पद्म लेश्या (६) शुक्ल लेश्या० ।
(१) परिणामद्वार-कृष्ण लेदयाके वर्ण गन्ध रम और म्पर्श निल लेश्या एणे परिणामता है जैसे दुधके अंदर खटाइ (छास) देनासे यह दुडू दहि पणे परिणमता है तथा वस्त्रके नया नया रंग देनासे वर्णान्तर होता है इसी माफिक अध्यवसायोंकी प्रेरणासे अर्थात शुद्ध अध्यवशासे पूर्व जो अशुभ वणादि था उन्होंके शुभ वर्णादि पणे परिणामते हैं और अशुद्ध अध्यवशासे पूर्वनों शुभ वोदि था उन्हों को अशुभ पणे परिणमायें इसी म फीक पेहला कृष्ण लेझ्याके अशुभ वर्णादि थे उन्हीकों शुभाध्यवशाकि प्रेर गासे निललेश्या पणे परिणमावे । इसी माफीक अधिक २ तर शुभ प्रेरणासे कृष्ण कापोत पणे एवं तेनो लेझ्या पणे एवं पद्म लेश्या पणे एवं शुक्ल लेश्या पणे परिणमे । एवं निल लेश्याका परिणाम अशुभाध्यवशासे कृष्ण लेश्या परिणमते है और शुभा. ध्यावशासे कापोत-तेजो- पद्म-शुक्ल लेश्यापणे परिणमते है एवं