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- इन्ही च्यारों व्यवहारीक शास्त्रोंकि साहितासे च्यारों अनुयोग, सुखपूर्वक प्रवेश कर शक्ते हैं। पूर्वोक्त च्यारानुयोगमें शास्त्र कारोंने मौख्य आत्मकल्याणके लिये द्रव्यानुयोग फरमाया है सिवाय इन्होंके ज्ञान है वह सर्व शुष्क ज्ञान है इसी लिये आत्मरसीक भाइयोंको जहां तक बने वहां तक स्वशक्ति माफीक द्रव्यानुयोगके लिये प्रयत्न करना चाहिये।
___ यह बात आप लोक अच्छी तरहसे जानते हैं कि उच्च पदार्थको प्राप्त करनेवो पुरुषार्थ भी उच्च कोटीका होना चाहिये । परन्तु जमाने हालमें कीतनेक भाइ ऊपरसे अच्छा डोल रखनेवाले अच्छी सुन्दर टईटलके कीताबो बहुतसी एकत्र कर अलमारीमें रख देते हैं कभी कीसी किताबके ४-५ पेन और कभी किसी किताबके पेन देखते हैं पढना अच्छा है परन्तु उन्होंसे जहां तक स्वल्प ही ज्ञान कण्ठस्थ न कीया जावेंगे वहां तक बढके आगेके लिये इतना लाभ नहीं उठा सकेगा उन्हीं द्रव्यानुयोग रसीक भाइयोंसे हम नम्रता पूर्वक निवेदन करते हैं कि आप एक तरहका व्यशन हीडाल दो कि इतना पाठ प्रतिदिन कण्ठस्थ करेगे या प्रतज्ञा करलो। - कण्ठस्थ ज्ञान कराने के लिये लेखकों की लेखक शैली भी ऐसी होनि चाहिये कि निसमें ज्यादा विस्तार न करते हुवे मूळ वस्तु और वस्तुका स्वरूप थोडा हीमें बतला दिया जाकि स्वल्स परिश्रममें कण्ठस्थ हो जा बाद मे विस्तारवाले ग्रन्थ भी सुख पूर्वक पढता जा और उन्हीका मूल रहस्य को समझता जा यह बापता ही पाती होगा कि कुछ ज्ञान कण्ठस्थ करोगे ।