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नय भांग पमाणेहिं, जे आया सायचायण,
सम्मदिठि उस नाओं, भणिय वीयरायहिं ॥१॥ - जो नय मांगा परिमाण और स्याहाद कर आत्माको जाणि है उन्हींको ही वीतराग देवोंने सम्यग्दृष्टि कहा है वास्ते पूर्वोक्त द्रव्यानुयोगमें प्रवेश होनेके लिये वर्तमानमें जो आगम है जिन्हींके अंदर श्री पन्नवणाजी सूत्र जिन्होंका ३१ पद हैं वह सूत्र श्री वीरप्रभुके २३वें पाट पर श्री श्यामाचार्य महाराज वीर निर्वाण तीनसो वर्ष बाद रचा था वह सूत्र केवल द्रव्यानुयोगमय है जिस्की विस्तार वृति श्री मलियागिरी आचार्य महाराजने करी है वह पन्नवण सूत्र बहूत कठिन है परन्तु उन्हींको सुगम अर्थात् एकेक विषयको एकेक थोकडा रूप बनाके कुल ३६ पदोंका ६५ थोकडे इतने तो सुगम है कि जिन्होंको स्वल्प परिश्रमसे कण्ठस्थ करनेवाला मानों एक पन्नवण सूत्रको ही कण्ठस्थ किया हो वह ६५ थोकडे सबके सब आन-तक छप चुके हैं परन्तु कोनसा भागमें कोनसा कोनसा थोकडा छपा है उन्हीके लिये निचे अनु. क्रमणका दि जाती है।
पन्नवणा सूत्रके पद
| थोकडेकि
विषय ।
शघ्रबोधके भागमें छपे .
नम्बर 0 num थोकडे
2ी
१ जीव विचार माग २नोंमें ., २ स्थान पद भाग ११मोंमें
, ३ दिशाणुवाइ भाग १में , ३ अल्पाब० १०२ भाग ९में
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