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भूमिका । प्यारे वाचक वृन्दो !
श्री मिनेन्द्रदेवोंके फरमाये हुवे जैनागमों स्याद्वाद गंभीर शैली जिन्होंके प्रत्येक व्याख्यासे चारों अनुयोगका ज्ञान हो शक्ता था परन्तु कालके प्रभावसे बुद्धि-बलकी हानि देखके श्रोमदार्य रक्षत सूरीनी महारानने चारों अनुयोगों को भिन्न भिन्न रूपसे रच कर भव्यात्माओं पर परमोपकार किया है ।
(१) द्रव्यानुयोग-निप्तमें नय निक्षेप स्याहाद षट द्रव्य जीव अनीव चैतन्यके साथ कर्मों का संयोग या वियोग आत्मा या पुद्गलों की शक्ति इत्यादि वस्तु धर्मका प्रतिपादन है ।
(२) गीणतानुयोग-जिसमें नरकके नरका वासा देव. तोंके पैमान या क्षेत्रका लम्बा चौडा ऊर्ध्व अधो तीरछा क्षेत्र तथा ज्योतिषी देवोंके चलन क्षेत्रका परिमाण इत्यादि ।
(३) चरणानुयोग निसमें साधू श्रावकों को क्रिया कलर कायदा आदि ।
(४) धर्म कथानुयोग-जिसमें महा पुरुषों के प्रभावीक चरित्र है इन्ही च्यारों अनुयोगके अंदर प्रवेश करनेके लिये प्रथम च्यार व्यवहारीक शास्त्रोंकी आवश्यकता है ।
(१) द्रव्यानुयोगके लिये-न्यायशास्त्र (२) गणतानुयोगके लिये-गणत शास्त्र (३) चरणानुयोगके लिये-नीतिशास्त्र (४) धर्म कथानुयोगके लिये-अलंकार शास्त्र