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(११) संस्थान द्वार---औदारिक, तेजस, कार्मण श० में छ संस्थान । वैक्रियमें दो ( सम हुड० ) आहारको १ समचौरस ।
(१२) संहनन द्वार-औदारिक, तेजस कार्मण छे संहनन क्रिय श० में संहनन नहीं । आहारको १ व्रजऋषभनाराच। .
(१३) सुक्ष्म बादर द्वार-(१) सबसे सुक्ष्म कार्मण श० (२) उससे तेजस बादर (३) आहारक बादर (४) वैक्रिय बादर (५) औदारिक बादर । सबसे बादर औदारिक उससे वैक्रिय सूक्ष्म । आहारक सुक्ष्म । तेजस सुक्ष्म । कार्मण सुक्ष्म ।
(१४) प्रयोजन द्वार-औदारिकका प्रयोजन आठ कर्मोंकों क्षय करके मोक्षमे नानेका है । वैक्रियका प्रयोजन नाना प्रकारका रुप बनाना । आहारकका प्रयोजन संशय छेदन करना । तेजस कार्मणका प्रयोजन संसारमें भवभ्रमण करानेका है।
(१५) विषय द्वार--औदारिककी विषय रुचकद्वीप, तक वैक्रियकि असंख्याते द्वीप समुद्र तक। आहारककि अढाई द्वीप तक । तेजस कार्मणकि चौदह गजलोक तक कि विषय है।
(१६) स्थिति द्वार-औदारिक, ज. अन्तर मु० उ० तीन पल्योपम । वैक्रिय ज०१ समय उ. ३३ सागरोपम | आहारक म. उ. अन्तर मुहूर्त । तेजस कार्मणकी अनादि अनन्त अनादि सान्त ।
(१७) अवगाहनाकी अल्पाबहुत्व । (१) सबसे स्तोक औदारिक शरीरकी ज• अवगाहना (२) तेजस कामणकी ज० अ० वि० । (१८) अल्पाबहुत्व बार (३) पैकियकी ज० अ० असं० गु. (१ स्तोक आहारीक शरीर (४) आहारककी ज. अ. " २) वैक्रय श. असं० गु.