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पापतत्त्व.
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स्थिति बारहमास. गति तिर्यचकी । प्रत्याख्यानी क्रोध - गाडाको लोक. मान-काष्टका स्थंभ माया चालते बैलका मात्रा. लोभ-का जलका रंग ( घात करेतो संयमकी स्थिति च्यार मासको गति मनुष्यकी ) संज्वलन के क्रोध ( पाणीकी लीक) मान (तृणके स्थंभ ) मायावांकी छाल. लोभ ( हल्द पतंगका रंग ) घात वीतरागताकी स्थिति क्रोधकी दो मास, मानको एक मास, मायाकी पंदरादीन, लोभकी अंतरमहुर्त, गति देवतोंकी करे. और हांसी (ठठा मकरी) भय, शोक, जुगप्सा रति अरति त्रिवेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद. नरकायुष्य नरकगति नरकानुपुत्रिं, तीर्थचगति, ती. चानुपूर्व एकेन्द्रियजाति बेइन्द्रियजाति चोरिंद्रयजाति ऋषभ नाराचसंहनन नाराच० अर्द्धनाराच० किलको० छेवटों संहनन, निग्रोदपरिमंडल संस्थान, सादीयो० बवनसं० कुब्जमं० हुडकसं स्थावरनाम सूक्षमनाम अपर्याप्तानाम साधारणनाम, अशुभनाम अस्थिरनाम दुर्भाग्यनाम दुःस्वरनाम अनादेयनाम अयशनाम अशुभागतिनाम, अपवातनाम निचगोत्र अशुभवर्ण गन्ध रस स्पर्श - दानान्तराय लाभान्तराय भोगान्तराय उपभोगान्तराय atर्यान्तराय. एवं पापकर्म ८२ प्रकार से भोगबीया जाते है इति पापतत्त्व |
(५) आश्रवतत्त्व - व जीवोंके शुभाशुभ प्रवृतिले पुन्य पापरूपी कर्म आनेका रहस्ता जैसे जीवरूपी तलाव कर्मरूपी नाला पुन्य पापरूपी पाणीके आने से जीव गुरु हो संसार में परिभ्रमन करते है उसे आश्रवतत्व कहते है जिसके सामान्य प्रकार से २० भेद हे मिथ्यात्वाश्रव यावत् सूची कुशमात्र अयत्नासे लेना रखना आश्रव ( देखो पैंतीस बोलसे atrai बोल ) विशेष ४२ प्रकार प्राणातिपात ( जीवहिंसा