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(१०८) शीघ्रबोध भाग २ जो. करना ) मृषावाद ( झूट बोलना ) अहसादान चौरीका करना. मैथुन, परिग्रह (ममत्व वढाना) श्रोतेन्द्रिय चक्षुइन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय रसेन्द्रिय स्पर्शन्द्रिय मन वचन काय इन आठोको खुला रखना अर्थात् अपने कब्जामें न रखना आश्रय हे क्रोध मान माया लाम एवं १७ बोल हुवे । अब क्रिया कहते है.
काइयाक्रिया अयत्नासे हलना चलना तथा अव्रतसे अधिगरणियाक्रिया-नये शस्त्र बनाना तथा पुराने तैयार कराना पावसीयाक्रिया-जीवाजीवपर द्वेषभाव रखनेसे परतापनियाक्रिया-जीवोंको परिताप देनेसे पाणाइवाइ क्रिया-जीवोंकों प्राणसे मारदेनेसे आरंभीकाक्रिया-जीवाजीषका आरंभ करनेसे परिग्रहकिक्रिया-परिग्रहपर ममत्व मुर्छा रखनेसे मायवतीयाक्रिया-कपटाइसे दशवे गुणस्थानक तक मिथ्यादर्शनक्रिया-तस्वकि अश्रद्धना रखनेसे अप्रत्याख्यानकिक्रिया-प्रत्याख्यान न करनेसे दिठ्ठीयाक्रिया-जीवाजीवको सरागसे देखना पुठ्ठीयाक्रिया-जीवाजीवको सरागसे स्पर्श करने से पाडूचीयाक्रिया-दुसरेकि वस्तु देख इर्षा करना सामंतवणिय-अपनि वस्तुका दुसरा तारीफ करनेपर
आप हर्ष लानेसे सहस्थियाक्रिया-नोकरोंके करने योग्य कार्य अपने हाथोंसे
करनेसे कारण इसमें शासनको लघुता होती है नसिहत्थिया-अपने हाथोंसे करने योगकार्य नोकरादिसे करानेसे; कारण वह लोग बेदरकारी अयत्नासे करने से अधिक पापका भागी होना पडता है।