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________________ 300 संगीतरत्नाकरः नन्यावर्तस्थितौ पादौ पाणिपादाग्ररेचितौ / पुरः प्रसारितौ यस्यां सा मरालाभिधीयते // 976 // इति मराला (5) संहतस्थानके स्थित्वा पार्थाभ्यां घर्षतः क्षितिम् / चरणौ यत्र सा चारी करिहस्ता प्रकीर्तिता // 977 / / इति करिहस्ता (6) नन्यावर्तस्थयोरञ्ज्योस्तिर्यक्सृत्वा कुलीरिका / इति कुलीरिका (7) रथचक्रादीनां पञ्चत्रिंशचारीणां भौमीत्वं प्रायेण भूतलसंबन्धानपायादित्यव. गन्तव्यम् // 975-1000- // इति पञ्चत्रिंशद्रोमचार्यः / (सु०) तिर्यङ्मुखां लक्षयति--वर्धमाने इति / यत्र वर्धमानस्थितौ पादौ द्रुतमानेन वामतो दक्षिणतश्च चरत: ; सा तिर्यमुखा // 975 // इति तिर्यमुखा (4) (सु०) मरालां लक्षयति-नन्द्यावर्तेति / यत्र नन्द्यावर्तस्थौ पादौ पाणिपादापरेचितौ, पुरः प्रसारितौ च यथा भवतः ; सा मराला // 976 // इति मराला (5) (सु०) करिहस्तां लक्षयति-संहतेति / यत्र संहतस्थानस्थौ पादौ पार्श्वदेशाभ्यां भूमिं घर्षतः ; सा करिहस्ता // 977 // इति करिहस्ता (6) (सु०) कुलीरिकां लक्षयति-नन्द्यावर्तेति / नन्द्यावर्तस्थौ पादौ यत्र तिर्यक् सरत: ; सा कुलीरिका || 977- // इति कुलीरिका (7) Scanned by Gitarth Ganga Research Institute
SR No.034230
Book TitleSangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
PublisherAdyar Library
Publication Year1953
Total Pages642
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size277 MB
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