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________________ भूमिका १४ मि कहते हैं। सम्भव है कि त्रिमलयका ही प्राचीन नाम चूडामणि रहा हो । उनके पिता ब्राह्मण जातिके तीर्थ थे। (बौद्धलोग अपने और जैनधर्मके अतिरिक्त शेष भारतीय धर्मवालोंको तीर्थकहते थे।) उनका नाम परिव्राजक कुरुनन्द था। धर्मकीर्ति बाल्यावस्थासे ही बडे बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थे। अतएव ये शीघ्र ही वेद, वेदाङ्ग, वैद्यक, व्याकरण आदि तीर्थों के सभी सिद्धान्तोंमें दक्ष हो गये। १६ या १८ वर्षकी अवस्थामे ही यह तीर्थोके दर्शनशास्त्रके अच्छे विद्वान पंडित हो गये। ये प्रायः बौद्धधर्म के न्याख्यान भी सुना करते थे अन्त में इनको विश्वास हो गया कि बौद्ध सिद्धान्त बिलकुल निर्दोष हैं । अब, ये पूर्णरूप से बौद्ध धर्मकी ओर - झुकने लगे। इन्होंने अपना वेष बौद्ध उपासकों का सा बनाया । जब ब्राह्मगोने इनसे इसका कारण पूछा तो इन्होंने. बौद्धधर्मकी प्रशंसा की । यह इसी बात पर जातिच्युत कर दिये गये। इसके पश्चात ये मध्यदेशमे आये । (यद्यपि तिब्बतदेशीय साहित्यमें मध्यदेश मगध को कहा है परन्तु मनुजी ने उत्तर में हिमालय, दक्षिणमें विन्ध्याचल, पूर्वमें प्रयाग और पश्चिममें सरस्वती ही के बीचके देशको मध्यदेश कहा है । जैसाकि कहा है-"हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्ये यत् प्राग् विनशादपि । प्रत्यगेव प्रयागाच्च मध्यदेशः प्रकीर्तितः॥ मनु०॥२॥ २१॥") यहां इनको आचार्य धर्मपालने संघमें प्रविष्ट कर लिया। इन्होंने यहाँ त्रिपिटकोंका अध्ययन किया। अब इनको ५०० सूत्र धारणी कण्ठ याद होगई। धर्मकीर्ति और कुमारिल। ये तीर्थमतके गुप्त सिद्धान्तोंके जानने की अभिलाषासे दासोंका सा वेष बना कर दक्षिण की ओर गये । यहाँ इनको पूछनेसे विदित हुआ कि ब्राह्मण कुमारिल उक्त विषयके अद्वितीय विद्वान् थे । भारतीय ग्रन्थ कुमारिलके धर्मकीर्तिका चाचा होने की किम्बदन्ती का समर्थन नहीं करते । कुमारिलके पास राजा की दी हुई बड़ी भारी सम्पत्ति थीं। इनके पास बहुतसे चावलोंके खेत, ५०० दास, ५०० दासियां और कई सौ आदमी थे। जब धर्मकीर्तिने उनके यहां सेवाकार्यमें प्रवेश पा कर बाहर और भीतर के ५० दालोका काम संभाल लिया तो कुमारिल और उनकी स्त्री सन्तुष्ट हो गये। अब धर्मकीर्तिको गुप्त सिद्धान्तोंके सुननेकी आज्ञा मिल गई ।
SR No.034224
Book TitleNyayabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmottaracharya
PublisherChaukhambha Sanskrit Granthmala
Publication Year1924
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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