SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ भूमिका प्रणको और प्रसिद्ध स्याद्वादरत्नाकरावतारिका के कर्ता रत्नप्रभसूरि ने १९८१ ई० में इनके नाम का उल्लेख किया है। (मल्लिवादिनके ग्रन्थ में उसका संवत ८८४ पड़ा हुआ है । यदि इसे विक्रम माना जावे तो यह ८२७ अथवा यदि इसे शक माना नावे तो यह ९६२ ई० होता है । एक प्रकारके विद्वानोंका मत है कि मल्लिवादिन् धर्मोत्तरके समकालीन थे किन्तु दूसरे प्रकारके विद्वान् उनका समय एक शताब्दी पीछे निर्धारित करते हैं। .. धर्मोत्तराचार्यके बनाये हुए निम्नलिखित ग्रन्थों का पता चलता है १. न्यायबिन्दुटीका-धर्मकीर्तिके न्यायबिन्दुपर विस्तृत टीका। यह अपनी मूल अवस्थामें छप कर पाठकोंके हाथ में है। इसका तिब्बी अनुवाद भी मिलता है। धर्मोत्तराचार्यके निम्नलिखित ५ ग्रन्थोंका और पता चला है। किन्तु उनका संस्कृत लुप्त है। केवल तिब्बी अनुवाद मिलता है। वह ग्रन्थ यह हैं २. प्रमाणपरीक्षा, ३. अपोह नाम प्रकरण, ४. परलोकसिद्धि, ५. क्षणभङ्गसिद्धि, और ६. प्रमाणविनिश्चय टीका-यह धर्मकीर्तिके प्रमाणविनिश्चयकी टीका है। धर्मोत्तराचार्यके पश्चात् बौद्ध न्यायके अन्य भी अनेक विद्वान् हुए हैं । किन्तु उन्होंने न्यायबिन्दुके ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं लिखा । अतएव अपना प्रयोजन निकल जानेसे हम इस विषयको यहीं समाप्त करके अब न्यायबिन्दुकार धर्मकीर्तिके ऊपर विचार करते हैं। (३) धर्मकीर्ति । .: (धर्मकीर्तिके विषयमें अनेक ग्रन्थों में खोजने पर भी हमको डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषणके इतिहाससे विशेष कहीं भी नहीं मिला । अतएव यहां उन्हींका अविकलं अनुवाद दिया जाता हैं-) जीवन चरित्र । - धर्मकीर्ति दक्षिणके चूडामणि ( सम्भवतः यह चोल देशका नाम है ) राज्यमें उत्पन्न हुए थे, यद्यपि इस नामका कोई भी देश नहीं है तथापि सभी प्रकारके विद्वान् त्रिमलयको धर्मकीर्तिकी जन्मभू.
SR No.034224
Book TitleNyayabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmottaracharya
PublisherChaukhambha Sanskrit Granthmala
Publication Year1924
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy