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________________ भूमिका १२ dea-tsan (जो७२८ ई० में उत्पन्न और ८६४ ई० में मरा) के निमन्त्रणपर तिब्बत गये थे। राजाने शान्तरक्षितकी. सहायतासे ७४९ ई० में समय के विहार ( Monastery of Sam-ye) को बनवाया था जो मगधके उदन्तपुर विहारके जैसा बनाया गया था। तिब्बतमें समये सबसे पहिला निययित (Regluear) विहार यहीथा और शान्तरक्षित उसका पहिला महन्त थे । उन्होंने तिब्बतमे १३ वर्ष तक अर्थात् ७६२ ई० तक कार्य किया।वह वहाँ आचार्य बोधिसत्त्वके नामसे प्रसिद्ध थे। वह निम्नलिखित ग्रन्थोंके कर्ता थे-वादन्यायवृत्ति विपंचितार्थ, धर्मकीतिके वादन्याय की टीका और तत्त्वसंग्रहकारिका-यह ३१ अध्यायों का अमूल्य दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें सांख्य जैन आदिका खंडन न्याय बिन्दु पूर्वपक्षे संक्षिप्त (धर्मकीर्तिके न्यायबिन्दुकी समाः लोचनाओं का संक्षेप) और तत्वसंग्रह पंजिका ( शान्तरक्षितके तत्वसंग्रह की टीका ) के कर्ता कमलशील ( लगभग ७५० ई०) शान्त रक्षित के अनुगामी थे। इन्हों ने तिब्बतमें महायान होशंग नामक चीनी साधुको पराजित करके बड़ा नाम कमाया था। ' सर्वसिद्धि कारिफा, बाह्यार्थसिद्धिकारिका, श्रुतिपरीक्षा, अन्याः पोहविचार कारिका और ईश्वरभंग कारिकाके कर्ता कल्याण रक्षित धर्मोत्तराचार्यके गुरु थे। ये राजा धर्मपालके समकालीन थे। जिनका देहान्त ८२९ ई० में हुआ था। . धर्मोत्तराचार्य (लगभग ८४७ ई.) धर्मोत्तर, जिसका वर्णन 'तारानाथकी गेस्चिच्टे देव बुधिजूमस घाँन शीफनर' के पृ० २२५ और 'ड्पाग-बसाम-बजान के पृ०१४४ में किया गया है। जिनको आचार्य धर्मोत्तर या धर्मोत्तराचार्य भी कहते हैं। तिब्बी भाषामें 'चॉस-मचांग' के नामसे प्रसिद्ध हैं। ये कल्याणरक्षित और कश्मीरके धर्माकरदत्तके शिष्य थे। यह प्रतीत होता है कि राजा वाणपालके बंगालमें राज्य करनेके समय में ही यह कश्मीरमें हुए थे। ब्राह्मण नैयायिक श्रीधर (लगभग ९९१ ई०) ने अपने ग्रन्थ न्यायकन्दली (पृ० ७६ विजयानगरम् सेरीज़ ) में, धर्मोत्तरटिप्पणकके कर्ता जैन दार्शनिक मल्लिवादिन्ने लगभग ९६२ ई०. के धर्मोत्तरकी न्यायबिन्दुटीकाकी टीका.. धर्मोत्तर टि
SR No.034224
Book TitleNyayabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmottaracharya
PublisherChaukhambha Sanskrit Granthmala
Publication Year1924
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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