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भाषारीका सहित जैसे-कोई वीतराग अथवा सर्वज्ञ है, क्योंकि वह वक्ता है । यहाँ पर व्यतिरेक असिद्ध और अन्वय संदिग्ध है।
सर्वज्ञवीतरागयोर्विप्रकर्षाद्वचनादेस्तत्र सत्त्वमसचं वा सं. दिग्धमनयोरेव द्वयो रूपयोः संदेहेऽनैकान्तिकः ।
सर्वज्ञ और वीतरागके विप्रकर्ष ( दूर ) होनेसे वहां वचन आदिका होना या न होना संदिग्ध है। अतएव इन दोनों रूपोमें संदेह होनेसे वक्तृत्व हेतु अनैकान्तिक है।
सात्मकं जीवच्छरीरं प्राणादिमत्वादिति । जैसे-जीवित शरीर आत्मासहित है, क्योंकि उसमें प्राण आदि हैं। न हि सात्मकनिरात्मकाभ्यामन्यो राशिरस्ति ।
यत्र प्राणादिवर्तते । सात्मक और निरात्मकसे भिन्न ऐसी कोई राशि नहीं है जहां प्राण आदि हो।
__ आत्मनो वृत्तिव्यवच्छेदाभ्यां सर्व संग्रहात् । आत्माके सद्भाव और अभावसे सबका संग्रह करनेसे [ अन्यराशिका अभाव है।]
नाप्यनयोरेकत्र वृत्तिनिश्चयः ।। इन दोनों [ सात्मक और निरात्मक J में एक स्थानमें सद्भावका निश्चय नहीं है।
सात्मकत्वेन निरात्मकत्वेन वा प्रसिद्ध प्राणादेरसिद्धिः ।
क्योंकि सात्मक अथवो निरात्मक रूपसे प्रसिद्ध होनेसे प्राण आदिकी असिद्धि हो जावेगी।
तस्माज्जीवच्छरीरसम्बन्धी प्राणादिः । अतएव प्राण आदि जीवितशरीर सम्बन्धी हैं ।
सात्मकादनात्मकाच सर्वस्माद्यावृत्तत्वेनासिद्धः । क्योंकि सात्मक और निरात्मक सबसे व्यावृत्त होनेसे असिद्ध है।
ताभ्यां न व्यतिरिच्यते न तत्रान्वेति । उसका न तो उन दोनोंसे व्यतिरेक और न अन्वय ही है। क्योंकि वह ( दोनों) एक आत्मामें भी सिद्ध नहीं हो सकते।