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________________ लास्यांग प्रकरण जब पात्र निरूपण किये गये तालों को शीघ्र दिखावे अथवा भावसूचक दूने-तिगुने अंगोत्पन्न सुक्ष्म उल्लासों द्वारा बारबार देखने वालों का मन हरण कर ले, तब वीरसिंह के पुत्र ने उसे उल्लास लास्यांग कहा है । १३. यसक ललितं स्यात्कुचाधस्तान्नयनं यसको मतः ।। १५३८ || यदि ललित हस्त को कुचों के नीचे ले जाया जाय, तो वह यसक लास्यांग कहलाता है । १४. भाव गीतं नृत्यानुगं यत्र नाट्यं च विल [स]ल्लयम् । समासाद्य मुदं यत्र पात्रं पुष्यन् कलाङ्कुरान् । नृत्येद् विलासमधुरं तदासौ भाव उच्यते ॥ १५३६॥ 1647 जहाँ गीत नृत्य का अनुगामी हो, नृत्य लय से शोभित हो और पात्र हर्ष प्राप्त करके कलांकुरों का पोषण करता हुआ हाव-भाव एवं मधुरता के साथ नृत्य करे, वहाँ भाव नामक लास्यांग होता है । १५. सुकलास लास्याङ्गानि सचारीणि पादादेरपि चालनम् । कृत्वान्तराद्वक्तुर्यान्मेलनं कलाकलापज्ञैः सुकलासं यन्मेलनं मेनिरेऽन्ये यदा 1646 गीतवाद्ययोः ॥१५४०॥ 1648 तदोदितम् । यौगपद्यतः । मनीषिणः || १५४१ ॥ स्थानचारीकराणां गीतवाद्यलयेष्वेतन् यदि लास्यांग चारी से युक्त हों, पैर आदि को भी चलाया जाय और वक्ता का अन्तर करके गीत और वाद्य में मेल कराया जाय, तो कला के विशेषज्ञ लोग उसे सुकलास नामक लास्यांग कहते हैं । दूसरे मनीषी गीत, वाद्य और लय में स्थान, चारी और हाथ के एक साथ मेल को सुकलास लास्यांग मानते हैं । १६. लय श्रितं कञ्चिल्लयं वेगाद् योजयेदितरौ लयौ । पात्रं सविस्मयं यत्र नृत्येऽसौ सम्मतो लयः ।। १५४२ || 1649 1650 जहाँ नृत्य में किसी चालू लय के साथ वेग से अन्य लयों को मिला दिया जाय और पात्र चकित रहे, वहाँ लय नामक लास्यांग होता है 1 ३८७
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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