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________________ नत्याध्यायः जब चारी में या स्थानक में ताल-लय का अनुगमन करने वाले, विद्युत, आकम्पित, आधुत, परिवाहित और कम्पित नामक पाँच मस्तक मुद्राओं द्वारा अभिनेता देखने वालों के चित्त को आनन्दित कर देता है, तब सज्जन लोग उसे त्रिकलि लास्यांग कहते हैं । ९. किन्तु यत्राङ्गना गीततालतुलितं चालनं यदा । 1640 भ्र वयोः स्तनयोःकट्याः कुर्यात् किन्तु तदा त्विदम् ॥१५३३॥ जहाँ रमणी गीत के ताल के अनुसार भौंहों, स्तनों तथा कटि का संचालन करती है, वहां किन्तु नामक लास्यांग होता है। १०. देशीकार मनोहरं यदग्राम्यं तत्तद्देशानुसारतः । 1641 नानारीत्यन्वितं नृतं देशीकारमिदं जगुः ॥१५३४॥ मनोहर, ग्राम्य से भिन्न और तत्तत् देश के अनुसार अनेक प्रकार की रीतियों से युक्त नृत को देशीकार लास्यांग । कहते हैं । ११. निजापन पात्रे यत्राप्रत्नेन सौष्ठवं रेखयान्वितम् । 1642 नृत्तति प्रेष्यते दृष्टिः करे सुगतिसुन्दरी । सभ्यातिमोहनीभावसम्पन्ना तन्निजापनम् ॥१५३५॥ 1643 जहाँ आसानी से सुन्दरतापूर्वक रेखा (राग) से अन्वित होकर नृत्य करते हुए पात्र पर दृष्टिपात किया जाय और हाथ में सभासदों (दर्शकों) को मोहित करने वाली अच्छी गति रूपी सुन्दरी हो, तो वहाँ निजापन लास्यांग होता है। १२. उल्लास क्षिप्रं निरूपितांस्तालान् दर्शयेद् भावसूचकैः । द्विगुणस्त्रिगुणैर्यद्वा पात्रं गात्रसमुद्भवः ॥१५३६॥ 1644 सूक्ष्मरसकृदुल्लासर्मनो हरति पश्यताम् । तबोल्लासं समाचष्दं तीरसिंहसुनन्दनः ॥१५३७॥ 1645
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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