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________________ नत्याध्याया ३१. अड्डस्खलितिका ___स्खलितोऽज्रिर्यत्र तिर्यगड्डस्खलितिका तु सा ॥१०५६॥ जब पैर तिरछा गिरता है, वहां अड्डस्खलितिका चारी होती है। ३२. ऊरवेणी पादौ स्वस्तिकबन्धेन स्थित्वाङ्ग्री घर्षतो धराम् । 1075 पार्वाभ्यां चेत्तदा धीररूरवेणी निरूपिता ॥१०५७॥ जब दोनों चरण स्वस्तिक स्थानक में अवस्थित होकर पाश्वों से पृथ्वी को घिसते हैं, तब धीर पुरुष उसे ऊरवेणी चारी कहते हैं। ३३. विश्लिष्टा स्थित्वाख़ी पाणिविद्धन चेद्विश्लिष्योपगच्छतः । 1076 यद्वापगच्छतो यत्र सा विश्लिष्टा तदोदिता ॥१०५८॥ जहाँ पाष्णि नामक स्थानक में अवस्थित होकर दोनों पैर अलग होकर निकट आ जाय या दूर हो जाँय तो उसे विश्लिष्टा चारी कहते हैं। ३४. समस्खलितिका अग्रतः पृष्ठतस्तिर्यक पादौ चेत्स्खलतः समम् । 1077 यत्र सोक्ता तदा चारी समस्खलितिका[बुधः] ॥१०५६॥ जब दोनों पैर आगे-पीछे तिरछे होकर एक साथ गिरें, तब उसे विद्वान् लोग समस्खलितिका चारी कहते हैं। ३५. संघट्टिता स्थित्वा विषमसूच्याख्यस्थानेनोत्प्लुत्य चेत् पतन् । 1078 क्षितौ संघट्टयेत् पादौ तदा संघट्टिता मता ॥१०६०॥ यदि विषमसूचि स्थानक में अवस्थित होकर फिर उछल कर गिरते हुए पैरों से पृथ्वी पर चोट की जाय, तो उस क्रिया को संघट्टिता चारी कहते हैं। उन्नीस देशी आकाशचारियाँ (४) १. दण्डपादा अधिं स्वस्तिकविश्लिष्टं निर्यगूवं प्रसारयेत् । 1079 यत्र सा दण्डपादाख्या चारी प्रोक्ता मनीषिभिः ॥१०६१॥ २७८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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