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________________ २१. गारुड स्थानक प्रकरण पुरोङ्घ्रिः कुञ्चितो वामो [दक्षिणो जानुना ] क्षितिम् । स्पृशेद् यदि तदा सद्भिर्गारुडं तदुदीरितम् ॥ ४१ ॥ जब बाँये पैर का अग्रभाग मुड़ा हो और दाहिना पैर घुटने से पृथिवी का स्पर्श करता हो, तब सज्जनों ने उसे गारुड स्थानक कहा है । २२. वृषभासन १. सम संयुते वियुते यद्वा भूमिश्लिष्टे तु जानुनी । [वृषभासनमाख्यातं सौष्ठवाधिष्ठितं तदा ] ||६४२ ॥ 957 जब दोनों घुटने संयुक्त या वियुक्त हों; किन्तु भूमि से सटे हुए हों और सौष्ठव से युक्त हों, तब उसे वृषभासन स्थानक कहते हैं । २३. नागबन्ध [दक्षिणां तु यदा जङ्घां वामोरुः पृष्ठदेशगाम् । निदध्यादुपविष्टः सन् नागबन्धं तदादिशेत् ] । 958 उत्तानास्यं त्रस्त मुक्तहस्तं सुप्तं समं भवेत् ॥६४३॥ यदि मुँह उत्तान और हाथ ढीला तथा खुला हुआ हो, तो उसे समसुप्त स्थानक कहते हैं । २. नत और उसका विनियोग यदि भूमि पर बैठे हुए स्थिति में बायें घुटने को पीठ की ओर गयी हुई दाहिनी पिंडली पर रख दिया जाय, तो उसे नागबन्ध स्थानक कहते हैं । छह सुप्तस्थानक (४) 959 960 त्रस्तहस्तयुगं सुतं मनाक्प्रसृतजङ्घकम् । यत् तन् नतं श्रमालस्यखेदादिषु निरूपितम् ॥१४४॥ 961 यदि दोनों हाथ ढीले हों और जंघा थोड़ी फैली हुई हो, तो उसे नत सुप्त स्थानक कहते हैं । श्रम, आलस्य तथा खेद आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है । २५५
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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