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________________ १६. एक जानुनत नृत्याध्यायः एकजानुनते त्वेकः समोऽङ्घ्रिपरोऽन्तरे । तिर्यक्कुचितजानुः स्या [ च्चतु] रङ्गुलसम्मिते ॥९३६॥ जब एक पैर स्वाभाविक स्थिति में हो और दूसरा पैर चार अंगुल की दूरी पर तिरछे तथा मुड़े हुए घुटने से युक्त हो, तो उसे एकजानुनत स्थानक कहते हैं । १७. ब्राह्म ब्राह्मे समोऽ‌ङ्घ्रिरेकोऽन्यः पृष्ठतः कु [ञ्चितः] कृतः । जानुसन्धिसमत्वेनोत्क्षिप्तः पादो यदि एक पैर स्वाभाविक स्थिति में हो दूसरे को पृष्ठभाग से मोड़ कर घुटने के जोड़ की बराबरी में ऊपर उठा दिया जाय, तो उसे ब्राह्म स्थानक कहते हैं । १८. वैष्णव बुधैर्मतः ॥३७॥ एकं [ पादं] समं कृत्वा किञ्चिच्चेत् कुञ्चितोऽपरः । प्रसारितः पुनस्तिर्यक् तदोक्तं वैष्णवं बुधैः ॥९३८ ॥ २५४ 952 953 जब एक पैर को समस्थित करके दूसरे को कुछ मोड़कर पुनः तिरछा फैला दिया जाय, तब उसे विद्वान् लोग वैष्णव स्थानक कहते हैं । १९. शेव स्थाने कूर्मासने जानुबाह्यगुल्फमि [लत्क्षि ]तिः । दक्षिणाङ्घ्रिः समो वामस्तदैवेतन मतं समाम् ॥१४०॥ 954 यदा समस्य वामाङ्ग्रेर्जानुशीर्षसमः परः । उत्क्षिप्तः कुञ्चितश्चैव तत् तदा शैवमीरितम् ॥१३६॥ जब दाहिना पैर समस्थित बायें पैर के घुटने के अग्रभाग के बराबर ऊपर उठा तथा मुड़ा हुआ हो, तब उसे शिव स्थानक कहते हैं । २०. कूर्मासन 955 956 यदि बायाँ पैर समस्थित हो और दाहिना पैर घुटने तथा टखने से मिलते हुए पृथिवी पर अवस्थित हो, तो उसे सज्जनों ने कूर्मासन स्थानक कहा है ।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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