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________________ नत्याध्यायः यदि उर:पावर्धिमण्डल दोनों हस्तों को हाव-भाव के साथ अपने उक्त प्रकार से ही अवस्थित या प्रस्तुत किया जाय तो उसे अर्धमण्डलवर्तना कहते हैं। २२. वलितवर्तना वलिताभिधहस्तौ चेतितौ स्वोक्तरीतितः । सौष्ठवेन तदा सोक्ता धीरैर्वलितवर्तना ॥७३७॥ 735 यदि दोनों वलित हस्त चारुतापूर्वक अपने उक्त प्रकार से प्रस्तुत किये जाँय तो धीर पुरुषों ने उसे वलितवर्तना कहा है। २३. घातवर्तना उल्वणौ वर्तितौ स्वोक्तरीत्योक्ता घातवर्तना ॥७३८॥ यदि दोनों उल्बण हस्तों को अपने उक्त प्रकार से प्रस्तुत किया जाय तो उसे घातवर्तना कहते हैं । २४. गात्रवर्तना अलपल्लवहस्तोऽन्तर्गात्रं व्यावतितो यदि । 736 परागास्योऽपविद्धः स्यात् तदोक्ता गात्रवर्तना ॥७३६॥ यदि अलपल्लव हस्त को अन्दर शरीर की ओर घमाकर पराङमख (उलटा) करके अपविद्ध किया जाय तो उसे गात्रवर्तना कहते हैं । २५. प्रतिवर्तना प्रातिलोम्येन गात्रस्य हस्त आक्षिप्य वर्तितः । 737 अलपल्लवनामा चेत् तदोक्ता . प्रतिवर्तना ॥७४०॥ यदि अलपल्लव हस्त को शरीर के विपरीत भाव से (बाहर की ओर) आक्षिप्त करके अवस्थित या प्रस्तुत किया जाय तो उसे प्रतिवर्तना कहते हैं । वर्तना के अन्य भेद वर्तना चतुरस्त्राख्यापरा तलमुखाह्वया । 738 वर्तना स्वस्तिकाख्यान्या विप्रकीर्णाभिधा परा ॥७४१॥ तथा पुष्पपुटाख्यान्या त्रिपताकाह्वया परा। 739 कर्तर्यास्याभिधा मुष्टिवर्तना (ख्या ततः) परा ॥७४२॥
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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