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________________ विचित्राभिनय प्रकरण १७. पदमवर्तना नलिनीपनकोशौ चेत् सविलासं लुठन्ति तौ । पूर्वसूरिभिरादिष्टा पद्मवर्तनिका तदा ॥७३१॥ 729 यदि नलिनीपद्मकोश नामक दोनों हस्त हाव-भाव के साथ लुढ़कें तो पूर्वाचार्यों ने उसे पद्मवर्तना कहा है । १८. नितम्बवर्तना नितम्बौ तु यदा हस्तौ विश्लिष्टाङ्गुलिपल्लवौ । मणिबन्धावधि भ्रान्तौ वर्तित्वा स्कन्धदेशयोः ॥७३२॥ 730 पुननितम्बदेशस्थौ तितौ क्रमशस्तदा । नितम्बवर्तना सोक्ता लक्ष्यलक्ष्मविशारदः ॥७३३॥ 781 यदि नितम्ब मुद्रा में दोनों हाथों को, जिनकी उँगलियाँ अलग-अलग रहें, कलाई तक घुमाते हुए कन्धे तक ले जाया जाय और फिर क्रमश: लाकर नितम्बों पर रख दिया जाय तो अभिनेताओं और नाट्याचार्यों ने उसे नितम्बवर्तना कहा है। १९. पल्लववर्तना पल्लवौ वतितौ चेत् सा सविलासमनोहरौ । निरवादि तदा धीरैः पल्लवाभिधवर्तना ॥७३४॥ 732 यदि दोनों पल्लव हस्तों को हाव-भाव तथा सुन्दरता के साथ प्रदर्शित किया जाय तो उसे धीर पुरुषों ने पल्लववर्तना कहा है। २०. ललितवर्तना लीलया ललितौ हस्तौ तितौ स्वोक्तरीतितः । यदा स्यातां तदा प्रोक्ता ललिताभिधवर्तना ॥७३५॥ 733 यदि दोनों ललित हस्तों को लीलापूर्वक हाव-भाव तथा सुन्दरता के साथ अवस्थित किया जाय तो उसे ललितवर्तना कहते हैं। २१. अर्षमडलवर्तना सविलासं यदा स्यातामुरःपावधिमण्डलौ । वतितो स्वोक्तरीत्येव त्वर्धमण्डलवर्तना ॥७३६॥ 734 २११
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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