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विचित्राभिनय प्रकरण.
शिखराख्या कपित्थाख्या तथा सूचीमुखाह्वया । 740
एवमेकादश ज्ञेया वर्तनाश्च मतान्तरे ॥७४३॥ अन्य आचार्यों के मत से वर्तना के ग्यारह भेद बताये गये हैं, जिनके नाम हैं : १.चतुरनवर्तना, २. तुलमुलवर्तना, ३. स्वास्तिकवर्तना, ४. विप्रकीर्णवर्तना, ५. पुष्पपुटवर्तना, ६. त्रिपताकवर्तना, ७. कर्तरीमुखवर्तना, ८. मष्टिवर्तना, ९. शिखरवर्तना, १०. कपित्थवर्तना और ११. सूचीमुखवर्तना।। १. चतुरस्त्रवर्तना
चतुरस्रो यदा हस्तौ चलितौ सांसकूर्परौ। 741 उद्वेष्टितक्रियापूर्वी पश्चाद् वक्षः समाभितौ ।
तदा धीरैः समादिष्टा चतुरस्रात्यवर्तना ॥७४४॥ 742 यदि दोनों चतुरस्र हस्तों को कन्ध तथा कुहनी सहित चलाया जाय और उद्वेष्टित (चारों ओर से घेरने की) क्रिया करने के अनन्तर उन्हें छाती पर अवस्थित किया जाय, तो धीर पुरुषों ने उसे चतुरस्रवर्तना कहा है। २. तलमलवर्तना
यदा तलमुखौ हस्तौ वर्तितौ स्वोक्तरीतितः ।
सौष्ठवेन तदा धीररुक्ता तलमुखाह्वया ॥७४५॥ 743 यदि दोनों तलमुख हस्तों को अपने उक्त प्रकार से सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया जाय तो धीर पुरुषों ने उसे तलमुखवर्तना कहा है। ३. स्वस्तिकवर्तमा
व्यावर्तनश्यिापूर्व क्रियेते स्वस्तिको यदा ।
तदा सद्भिः समादिष्टा वर्तना स्वस्तिकाभिधा ॥७४६॥ 744 यदि दोनों स्वस्तिक हस्तों को व्यावर्तन क्रिया के द्वारा प्रस्तुत किया जाय तो सज्जनों ने उसे स्वस्तिकवर्तना कहा है। ४. विप्रकीर्णवर्तना
उद्वेष्टितक्रियापूर्व भ्रमन्तौ विच्युताविमौ । स्वस्वपार्श्वगतौ प्रोक्ता विप्रकीर्णाख्यवर्तना ॥७४७॥ 145