SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नृत्याध्यायः ९. रचितवर्तना, १०. आविद्धर्तता, १९. केशवना, १२. भालवर्तनां १३. उरः स्थवर्तना, १४. कक्षवर्तना, १५. खड्गवर्तना, १६. दण्डवर्तना, १७. पद्मवर्तना, १८. नितम्बवर्तना, १९. पल्लवर्तना, २०. ललित वर्तना, २१. अर्धमण्डलवर्तना, २२ वलितवर्तना, २३. घातवर्तना, २४ गात्रवर्तना और २५. प्रतिवर्तना । १. पताकवर्तना पताकस्य मुहुर्भवेत् । मणिबन्धावधिभ्रान्तिः सव्यापसव्यतो यत्र सा पताकाख्यवर्तना ॥७१५॥ यदि पताकहस्त को दायें-बायें क्रम से बार-बार मणिबन्ध (कलाई ) तक घुमाया जाय तो वह पताकवर्तना कहलाती है । २. अलपद्मवर्तना श्रलपद्मकरे यत्र व्यावृत्तिक्रियया यदा । वतितः सालपद्माख्या वर्तना गदिता बुधैः ॥७१६॥ यदि दोनों अलपद्महस्तों को घुमा कर रख दिया जाय तो विद्वानों ने उसे अलपद्मवर्तना कहा है। ३. अरालवर्तना कर्मणा वेष्टिताख्येन रचयित्वा यदा करः । अरालो वर्तितः पश्चाद् यत्रोद्वेष्टितकर्मणा । प्रत्यपादि धीरैररालकरवर्तना ॥७१७॥ 713 714 वक्षसः शुकतुण्डकः । तदा 716 यदि पहले वेष्टित (घेरने ) क्रिया के द्वारा अराल हस्त की रचना करके तत्पश्चात् उद्वेष्टित ( चारों ओर घरने की) क्रिया द्वारा उसे अवस्थित किया जाय, तो विद्वानों ने उसे अरालहस्तवर्तना कहा है । ४. शुकुण्ड वर्तना 715 श्रविद्वाधोमुखो यत्र वतितश्च रुपृष्ठे सा शुकतुण्डाख्यवर्तना ॥७१८ ॥ 717 यदि शुकण्ड हस्त को छाती के सामने टेढ़ा तथा अधोमुख करके जाँघ पर रख दिया जाय तो उसे शुकतुण्डवर्तना कहते हैं । ५. अवहित्यवर्तना करावेवमुभौ यत्र साहित्याख्यवर्तना ॥७१६॥ यदि दोनों शुकतुण्ड हस्तों को शुकतुण्डवर्तना में अवस्थित किया जाय तो उसे अवहित्यवर्तना कहते हैं । २०८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy