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वर्तना (हस्तविन्यास) का निरूपण कराभिनयशोभा या विचित्रां रचयन्ति हि ।
ततो मयेह लिख्यन्ते वर्तनास्ता मनोहराः ॥७०८॥ 707 विचित्र प्रकार की मनोहर वर्तनाएँ हस्ताभिनय की शोभा में चारुता उत्पन्न करती हैं। इसलिए यहाँ उनका निरूपण किया जा रहा है। वर्तना के भेद
वर्तनाद्या पताकाख्यालपद्मारालयोः परे । वर्तने शुकतुण्डाख्याबहित्थाख्ये च वर्तने ॥७०६॥ 708 मकराख्या ततो ज्ञेया खटकामुखवर्तना । अन्योर्ध्ववर्तना तद्वद् रेचिताभिधवर्तना ॥७१०॥ 709 प्राविद्धवर्तना केशबन्धाख्या वर्तना ततः । भालवर्तनिकोरःस्थवर्तना कक्षवर्तना ॥७११॥ 710 खड्गवर्तनिका दण्डवर्तना पद्मवर्तना । नितम्बपल्लवाख्ये द्वे तथा ललितवर्तना ॥७१२॥ 711 अर्धमण्डलपूर्वा च वर्तना वलिताभिधा । घातवर्तनिका गात्रवर्तना प्रतिवर्तना ॥७१३॥ 712
पञ्चविंशतिरित्युक्ता वर्तना वायुसूनुना ॥७१४॥ हनुमान जी ने पच्चीस प्रकार की वर्तनाएँ बतायी है। उनके नाम हैं : १. पताकवर्तना, २. अलपद्मवर्तना, ३. अरालवर्तना, ४. शुक्रतुण्डवर्तना, ५. अबहित्यवर्तना, ५. मकरवर्तना ७. खटकामुखवर्तना, ८. ऊध्र्ववर्तना,
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