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________________ ६. मकरवर्तना करो मकरनामा चेत् पुरतः पार्श्वयोस्तथा । व्यावतितो मकरवर्तना ॥७२०॥ यदि मकर हस्त को सामने तथा दोनों पावों में बाहर और भीतर व्यावर्तित ( घुमा ) दिया जाय तो उसे मकरवर्तना कहते हैं । ७. खटकामुखवर्तना यदि उदवृत्त ९. रेचितवर्तना सव्यापसव्यतो नाभिदेशे या खटकास्ययोः । भ्रान्तिरामणिबन्धं सा खटकामुखवर्तना ॥७२१॥ यदि दोनों खटकामुख हस्तों को नाभि के पास बाँये दाँये क्रम से कलाई तक घुमाया जाय तो उसे खटकामुखवर्तना कहते हैं । ८. ऊर्ध्ववर्तना विचित्राभिनय प्रकरण वर्त्तितावूर्ध्वदेशे तदोर्ध्ववर्तना चेदुवृत्ताभिधहस्तकौ । प्रोक्ता कोहलेन मनीषिणा ॥७२२॥ दोनों हस्तों को ऊपर उठा कर अवस्थित किया जाय तो आचार्य कोहल ने उसे ऊर्ध्ववर्तना कहा है । १७ हंसपक्षा रच्येते 718 त्वरितभ्रमौ । स्वस्तिकाच्चेद्विच्युतौ यत्र सोक्ता रेचितवर्तना ॥ ७२३ ॥ रेचितौ यदि हंसपक्ष दोनों हस्तों को स्वस्तिक मुद्रा से हटाकर शीघ्रतापूर्वक घुमाया जाय और फिर रेचित हस्तों की रचना की जाये, तो उसे रेचितवर्तना कहते हैं । १०. आविवर्तना केशबन्धाभिधौ व्यावतितौ क्रमात् । 719 प्राविद्धवयोर्यत्र बाहू श्रविद्धौ चेत् तदा सोक्ता धीरैराविद्धवर्तना ॥७२४॥ यदि आविद्धवक्र दोनों हाथों की बाँहों को क्रमशः घुमाकर मोड़ लिया जाय तो धीर पुरुषों ने उसे आविद्धवर्तना कहा है । ११. केशबन्धवर्तना हस्तौ निर्गतौ केशदेशतः । 720 721 722 728 १०९
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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