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________________ विचित्राभिनय प्रकरण ससौष्ठवैः साभिमानैर्गात्रैराटोपसंयुतः । गम्भीरार्थानुदात्तार्थान नाट्यज्ञः सन्निदर्शयेत् ॥६५०॥ 647 नाटयवेत्ता को सुन्दरता, गर्व तथा सौष्ठव से युक्त अंगों को फैलाकर गम्भीर तथा उदात्त भावों वाली वस्तुओं का अभिनय करना चाहिए। ध्वजच्छत्रपताकादीन् दर्शयेद् दण्डधारणः । प्रहारान् विविधांश्चैव नानाशस्त्रग्रहैर्दिशेत ॥६५१॥ 648 दण्ड-धारण द्वारा ध्वज, छत्र तथा पताका का और अनेक शस्त्रों के ग्रहण द्वारा विभिन्न प्रकार के आयुधों का प्रदर्शन करना चाहिए। विस्फुलिङ्गान् घनरवान् विद्युदुल्कार्चिषस्तथा । स्रस्तरङ्गस्तद्वदक्षिनिमेनिर्दिशेद् बुधः ॥६५२॥ 649 विद्वान व्यक्ति को शरीर कम्पाकर और उसी प्रकार आँख मीच कर आग की चिनगारियों, मेघ गर्जनों, बिजली, उल्का और लपटों का अभिनय करना चाहिए । उद्वेष्टितौ परावृत्तौ कृत्वा हस्तौ शिरो नतम् । मिह्मदृष्ट्याङ्गसंकोचादास्यप्रच्छादनेन च ॥६५३॥ .. अलिरेणपती अलिरेणुपतङ्गानां तोयस्य च निवारणम् । , नमस्तेजोऽनिलं चोष्णं नाट्यज्ञः सन्निरूपयेत ॥६५४॥ 651 दोनों हाथों को उद्वेष्टित और परावृत्त में करके, शिर झुकाकर, कुटिल दृष्टि से, अंगों को सिकोड़ कर और मुख को ढक कर नाट्यवेत्ता को भ्रमर, धूल, पतंग, जल-निवारण, आकाश, तेज तथा गर्म वायु (लू) का अभिनय करना चाहिए। अथ पुंसां तथा स्त्रीणामखिलाभिनयं पृथक् । भावानुभावसंयुक्तं कथयाम्यधुना क्रमात ॥६५॥ . 652 अब पुरुषों तथा स्त्रियों के भावों तथा अनुभावों से युक्त समस्त अभिनय को पृथक्-पृथक् रूप में क्रमश: निरूपित किया जा रहा है। 650 पाश्लेषणाच्छरीराणां सस्मितान्नयनादपि । तथोल्लुकसनेनापि पुमान् हर्ष विनिदिशेत ॥६५६॥ ! 663
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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