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________________ हस्तप्रचार प्रकरण शास्त्रीय विधि से निष्पन्न हस्ताभिनय के लिए जो हस्तमुद्रा विशेष रूप से प्रयुक्त होती है उसे हस्तकरण कहा जाता है। हस्तकरण के भेद आवेष्टिताभिधं पूर्वमुद्वेष्टितमतः परम् । व्यावर्तितं तथा ज्ञेयं परिवर्तितमित्यपि ॥६०६॥ 604 चतुर्धवं तदाख्यातं तल्लक्ष्म व्याहरे क्रमात् । हस्तकरण के चार भेद होते है : १. आवेष्टित, २. उद्वेष्टित ३. व्यावर्तित और ४. परिवर्तित । उनके लक्षण क्रमशः निरूपित किये जा रहे हैं । १. आवेष्टित 605 तर्जन्याद्या यदाङगुल्यः कुर्वन्त्यावेष्टनं क्रमात् ॥६१०॥ तलसम्मुखमावक्ष एति हस्तोऽपि पावतः । आवेष्टितं तदा प्रोक्तं करणं नृत्यकोविदः ॥६११॥ 606 जब (अंगूठे को छोड़कर) शेष चारों उँगलियाँ क्रमशः मोड़ ली जाती हैं और हथेली को सम्मुख करके हाथ को भी बगल से छाती तक पहुंचा दिया जाता है, तब नृत्यविशारदों ने उसको आवेष्टित करण कहा है । २. उद्वेष्टित तर्जन्याद्यगुलीनां चेन्निर्यातं स्यात् तलावहिः । क्रमात् पाणेश्च बक्षस्तस्तदोद्वेष्टितमीरितम् ॥६१२॥ 607 जब (आवेष्टित में हथेली की ओर झुकी हुई) उंगलियाँ उसी प्रकार क्रमशः हथेली से खोलकर बाहर निकाली जाय और हाथ को छाती से अलग किया जाय, तब उसे उद्येष्टित करण कहते हैं। .
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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