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________________ नत्याध्यायः ३. व्यावर्तित व्यावर्तन्ते कनिष्ठाद्या यत्राङगुल्यः क्रमादि । अभ्यन्तरेण तत् प्रोक्तं सद्भिावर्तितं तदा ॥६१३॥ 608 जब हाथ की उँगलियाँ कनिष्ठिका से लेकर तर्जनी तक क्रमशः हथेली की ओर झुकायी जाती हैं, तब विद्वानों ने उसे व्यावर्तित करण कहा है। ४. परिवर्तित कनिष्ठाद्यगुलीनां चेन्निष्क्रमो बाह्यतः क्रमात् । तदा तत् करणं धीरः परिवर्तितमीरितम् ॥६१४॥ 609 जब कनिष्ठा से लेकर तर्जनी तक की सब उँगलियाँ क्रमशः बारी-बारी करके बाहर की ओर खुलती हैं, तब विद्वानों के मत से, उसे परिवर्तित करण कहते हैं। हस्त प्रचार निरूपण समाप्त ,
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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