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नृत्याध्यायः
तेरह हस्तक्षेत्र का निरूपण हस्तक्षेत्र (हाथों के स्थानों) के भेद
शिरो ललाटं श्रवणं स्कन्धोरः कटिशीर्षकम् । नाभी पार्श्वद्वयं पश्चादूवं चाधः पुरस्ततः ।
599 ऊरुद्वयं च हस्तानां क्षेत्राणीति त्रयोदश ॥६०५॥ हाथों के तेरह स्थान (क्षेत्र) बताये गये हैं, जिनके नाम हैं : १. शिर, २. ललाट, ३. कान, ४. कन्धा, ५. वक्षःस्थल, ६. कमर, ७. नाभि, ८. दोनों पाव, ९. पीछे, १०. ऊपर, ११. नीचे, १२. सामने और १३. दोनों जंघाएँ।
बीस करकर्मों का निरूपण करकर्म (हाथों के कार्यों) के भेद
मोक्षणं रक्षणं क्षेपो निग्रहश्च परिग्रहः । धूननं स्फोटनं श्लेषो विश्लेषो मोटनं तथा ॥६०६॥ तोलनं ताडनं छेदोत्कृष्टयाकृष्टिविकृष्टयः । विसर्जनं तथाह्वानं तर्जनं भेद इत्यपि ।
संज्ञया ज्ञातलक्ष्माणि करकर्माणि विंशतिः ॥६०७॥ 602 संकेत या इशारे से निष्पादित होने वाले हस्त-कार्यों के बीस भेदों का अर्थ-ग्रहण उनके लक्षणों से ही कर लेना चाहिए । उनके नाम है : १. मोक्षण (छुड़ाना), २. रक्षण (रक्षा करना), ३. क्षेप (फेंकना), ४. निग्रह, (रोकना), ५. परिग्रह (लेना), ६. धूनन (कंपाना), ७. स्फोटन (फोड़ना), ८. श्लेष (मिलाना), ९. विश्लेष (अलग करना), १०. मोटन (चूर्ण करना), ११. तोलन (तौलना), १२. ताडन (पीटना), १३. छेद (काटना), १४. उत्कृष्टि (ऊपर उठाना), १५. आकृष्टि (खींचना), १६. विकृष्टि (हटाना), १७. विसर्जन (समाप्ति या विदा करना), १८. आह्वान (बुलाना), १९. तर्जन (मारना) और २०. भेद (फोड़ना)।
चार हस्तकरणों का निरूपण हस्तकरण (हस्त चेष्टाएँ)
यथालक्ष्मविनिष्पन्नहस्तस्याभिनयाय या । कृतिः क्रियाविशेषस्य तद्धस्तकरणं भवेत् ॥६०८॥ 603
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