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________________ दृष्टि प्रकरणे गिरी हुई, ऊपर उठे हए पलकों वाली, कुछ खुली हुई पुतलियों वाली, आँसुओं से भरी और मन्द-मन्द संचरण करने वाली दष्टि को विद्वानों ने दीना कहा है। ४. क्रुद्धा और उसका विनियोग कुटिल भ्र कुटी रूक्षा [किञ्चित्तरलतारका] । 447 स्तब्धोवृत्तपुटा दृष्टिः क्रुद्धा क्रोधे निरूपिता ॥४४४॥ टेढ़ी भवों वाली, रूखी, कुछ चंचल तारों वाली स्थिर और उठे हुए पलकों वाली दृष्टि क्रुखा कहलाती है। क्रोध के भावों को व्यक्त करने के लिए उसका विनियोग होता है। ५. दप्ता और उसका विनियोग उदिगरन्तीव या धैर्य स्थिरा चोत्साहिनी तथा । 448 दृष्टिदृप्ताभिधोत्साहे सा योज्या नृत्तकोविदः ॥४४५॥ धैर्य को उगलति हुई-सी स्थिर तथा उत्साहयुक्त दृष्टि को नाटयाचार्यों ने दृप्ता कहा है। उत्साह के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ६. भयान्विता त्रासान्निष्क्रान्तमध्येव . विस्तारितपुटोभया । 449 विलोलतारका भीत्या दृष्टिस्त्रस्ता भयान्विता ॥४४६॥ मानो भय से बाहर निकली मध्यभाग वाली, दोनों खुली हुई पलकों वाली, भय से काँपती हुई तारों वाली भयग्रस्त दष्टि भयान्विता कहलाती है। ७. जुगुप्सिता . . योद्विग्ना दृश्यमालोक्य संकुचत्पुटतारका । अव्यक्तालोकिनी धीरैरसावुक्ता जुगुप्सिता ॥४४७॥ दृश्य को देखकर उद्विग्न (व्याकुल) हुई, संकुचित पलकों एवं पुतलियों वाली और साफ न दिखायी देने वाली दृष्टि को धीर पुरुषों ने जुगुप्सिता कहा है। ८. विस्मिता और उसका विनियोग विस्तारितपुटद्वन्द्वातिशयोभ्रान्ततारका । विकाशिनी. समा दृष्टिविस्मिता विस्मयोद्धवा । ...
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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