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________________ नृत्याध्यायः फैली हुई, दोनों पलकों वाली, अत्यन्त घूमने वाले तारों वाली, खिली हुई और सम दृष्टि को विस्मिता कहते हैं । विस्मय के भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है। दृशोऽनक्ताभिनयना ज्ञेयाः स्वस्वरसाश्रयाः ॥४४८॥ 452 जिन दृष्टियों के यहाँ अभिनय-विनियोग नहीं बताये गये हैं, अपने-अपने रसों के अभिनय में उनका विनियोग समझना चाहिए। संचारी भावजा दृष्टियाँ (३) १. शून्या और उसका विनियोग निष्कम्पा समतारा या मलिना शून्यदर्शना । तथा समपुटा बाह्यविषयेषु गतस्पृहा । .. 453 सा दृष्टिः कथिता शून्या धीरैश्चिन्तानिरूपणे ॥४४६॥ कम्पनरहित, सम तारों वाली, मलिन, शून्य दिखायी पड़ने वाली, सम पलकों वाली और वाह्य विषय को ग्रहण करने में निस्पृह दष्टि शन्या कहलाती है। विद्वानों ने चिन्ता का भाव प्रकट करने में उसका विनियोग बताया है। २. मलिना और उसका विनियोग किञ्चित्कुश्चत्पुटा लक्ष्यायावर्तितकनीनिका । 454 प्रस्पन्दमानपक्ष्माना मलिनान्ता च या भवेत् ॥४५०॥ सा दृष्टिर्मलिना प्रोक्ता वैवये विहृते स्त्रियाः । 455 प्रियेण यदसंलापः कालेऽपि विहृतं हि तत् ॥४५१॥ कुछ सिकुड़े हुए पलकों वाली, लक्ष्य को ग्रहण करने में असमर्थ पुतलियों वाली, बरोनियों के अग्रभाग से कम्पित और अन्तिम भाग से मलिन (धुंधली) दष्टि मलिना कहलाती है। मालिन्य तथा स्त्रियों के प्रेमप्रदर्शन और उचित अवसर पर ही प्रिय के साथ वार्तालाप करने (विहृत-स्त्रियों के दस हावों में एक ) में उसका विनियोग होता है। ३. श्रान्ता और उसका विनियोग श्रमम्लानपुटा सन्ना किञ्चित्कुञ्चदपाङ्गिाका । 456 पतत्कनीनिका श्रान्ता दृष्टिः सद्भिः श्रमे मता ॥४५२॥ श्रम से म्लान पलकों वाली, स्तब्ध, कुछ सिकुड़ी हुई कोरों वाली और नीचे गिरती हुई तारों वाली दृष्टि श्रान्ता कहलाती है। श्रम के अभिनय में विद्वानों ने उसका विनियोग बताया है। १४८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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