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________________ नृत्याध्यायः घृणा के भावों को उद्दीप्त करने वाली, दृश्य से चंचल तारों वाली, सिकुड़ी हुए पलकों के कोरों वाली, सटी हुई और घूमते हुए पलकों वाली दृष्टि बीभत्सा कहलाती है। बीभत्स रस के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ८. अद्भुता और उसका विनियोग तारका । किञ्चित्कुञ्चितपक्ष्माग्रा सौम्यापाङ्गविकासाख्याऽद्भुता सा दृष्टिरद्भुते ॥ ४४० ॥ ईषत सिकुड़ी हुई बरौनियों के अग्रभाग वाली, अश्चर्य के साथ घूमती हुई पुतली वाली, सौम्य तथा खिले हुए कोरों (अपांगों) से सम्पन्न दृष्टि अद्भुता कहलाती है । अद्भुत रस के अभिनय में उसका विनियोग होता है । आठ स्थायिभावजा दृष्टियाँ (२) १. स्निग्धा 442 स्मिततारा साभिलाषोत्क्षिप्त र्या विकाशिनी । काक्षिणी सहर्षा सा दृष्टिः स्निग्धोदिता बुधैः । उत्क्षेप केचिदुभयवोराहुर्मनीषिणः ॥ ४४१ ॥ 444 मुस्कराती हुई पुतली वाली, चाहभरी, ऊपर फेंकी हुई भवों वाली, खिली हुई, कटाक्ष करने वाली और हर्षित दृष्टि स्निग्धा कहलाती है। कुछ विद्वानों का कहना है कि उसमें दोनों भवों को ऊपर फेंकना चाहिए । २. हृष्टा और उसका विनियोग १४६ स्मिताकृतिविशत्तारा फुल्ल गल्लयुगा चला । मनागाकुञ्चितप्रान्ता दृष्टिर्या च निमेषिणी । सा हृष्टा दृष्टिरादिष्टा हासे नृत्तविचक्षणैः ॥ ४४२ ॥ हास्ययुक्त आकृति वाली, विशद तारों वाली, दोनों कपोलों को उत्फुल्ल करने वाली, चंचल, कुछ सिकुड़ी हुई कोरों वाली निमेष दृष्टि हृष्टा कहलाती है । नाट्यशास्त्रियों ने हास्य रस के अभिनय में उसका विनियोग बताया ३. दीना मनावस्तोर्ध्वपुटा किञ्चिदावृत्ततारका । बाष्पाविलाल्पसञ्चारा दृष्टिदनोदिता बुधैः ॥४४३ ॥ 443 445 446
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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