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नृत्याध्यायः
यदि बाहु को वक्षःस्थल के आगे मण्डलाकार में चारों ओर घुमाया जाय, तो उसे अपविद्ध कहते हैं । युद्ध आदि में गदा, खड्ग (तलवार) आदि का भाव प्रकट करने के लिए उसका विनियोग होता है । ११. कुञ्चित और उसका विनियोग
सूचीं कुर्वन् कूर्परस्तु वक्रितः कुञ्चितो भवेत् । पानभोजनयोरेष खड्गधारणे ॥३८२॥
प्रहारे
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यदि कुहनी को सूची के आकार में (नोकीली) बनाते हुए टेढ़ा कर दिया जाय तो उस बाहु को कुञ्चित कहा जाता है । पीने, भोजन करने, प्रहार करने और खड्ग धारण करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। १२. सरल और उसका विनियोग
प्रसारितः पार्श्वयोश्चद्बाहरूर्ध्व मधोऽपि यः । सरलोऽसौ तदा पूर्वः पक्षानुकरणेऽपरः ।
माने भवेत्तृतीयस्त भूस्थापौरुषो गतिः (? षयोर्मतः) ॥३८३॥
यदि बाहु को दोनों पावों, ऊपर तथा नीचे फैला दिया जाय तो उसे सरल कहा जाता है। पार्श्व में फैलायी जाने वाली बाहु के पक्ष का अनुकरण करने में; ऊपर फैलायी जाने वाली बाहु का मान करने में; और नीचे फैलायी जाने वाली बाहु का भूमि पर स्थित वस्तु तथा अपौरुषेय वस्तु का भाव दर्शाने में उसका विनियोग होता है ।
१३. नम्र और उसका विनियोग
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मनाग्वत्रीकृतो नम्रः
स्तोत्रे माल्यादिधारणे ॥ ३८४ ॥
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यदि बाहु को थोड़ा झुका दिया जाय तो उसे नम्र कहा जाता है । स्तोत्रपाठ तथा माल्यादि धारण करने में उसका विनियोग होता है ।
१४. आन्दोलित और उसका विनियोग
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बाहुरान्दोलितोऽन्वर्थः
सविलासगतादिषु ॥ ३८५॥
अर्थं का अनुसरण करने वाली ( अर्थात् इधर-उघर, ऊपर-नीचे चलायी जाने वाली ) बाहु आन्दोलित कहलाती है । हाव-भाव के साथ संचालित होने आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है । १५. उत्सारित और उसका विनियोग
निजं पार्श्व सरन्नन्यपाशर्वादुत्सारितो भुजः । जनतोत्सारणे प्रोक्ता नियोगोऽस्य मनीषिभिः || ३८६ ॥
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