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________________ अंग प्रत्यंग प्रकरण . जो बाह छाती से शिर पर जाकर पुनः छाती पर ही आकर अवस्थित हो जाय, वह अञ्चित कहलाती है। नत्ताचार्यों ने खेद के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ६ स्वस्तिक और उसका विनियोग पार्श्वव्यत्यासतो लग्नौ बाह स्वस्तिक ईरितः ।। 383 रवेर्भवेदुपस्थाने प्रणामे परिरम्भणे ॥३७७॥ यदि दोनों बाहओं को दोनों विपरीत पावों ( अगल-बगल ) में सटा दिया या अवस्थित किया जाय तो उसे स्वस्तिक बाहु कहते हैं । सूर्योपस्थान, प्रणाम तथा आलिंगन का भाव प्रदर्शित करने के लिए उसका विनियोग होता है। ७. मण्डलगति और उसका विनियोग सर्वतो भ्रमणाद् यः स्यात् स मण्डलगतिर्भुजः । 384 भ्रमणे तु गदाखड्गाद्यायुधानां प्रकीर्तितः ॥३७८॥ यदि बाहु को ( वृत्ताकार ) चारों ओर घुमाया जाय तो उसे मण्डलगति कहते हैं। गदा तथा तलवार आदि आयुधों को भाँजने (घुमाने) का भाव प्रकट करने के लिए उसका विनियोग होता है। ८. तिर्यक् (और उसका विनियोग ) पापिगमनाबाहुस्तिर्यगाख्यो बुधर्मतः ॥३७॥ 385 विद्वानों का अभिमत है कि यदि बाह को पाव भाग से हटा या अलग कर दिया जाय तो उसे तिर्यक कहते हैं । (दूर हट जाने या अलग हो जाने के भाव को प्रदर्शित करने के लिए उसका विनियोग होता है)। ९. पृष्ठानुसारी और उसका विनियोग .. ' पृष्ठतः .. सरणात्पृष्ठानुसारी बाहुरीरितः । वीटिका ग्रहणे त्वेष तूणाबाणग्रहे तथा ॥३८०॥ 386 यदि बाहु को पीठ की ओर ले जाया जाय तो उसे पृष्ठानुसारी कहते हैं। पान का बीड़ा लेने ( या चोलि की ग्रन्थि बाँधने) और तूणीर (तरकश) से बाण निकालने का भाव प्रकट करने के लिए उसका विनियोग होता है। १०. अपविद्ध और उसका विनियोग उरसो मण्डलाकारभ्रान्त्या यो निःसृतो भुजः । सोऽपविद्धो गदाखड्गयुद्धादिषु नियुज्यते ॥३८१॥ 387
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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