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________________ नत्याध्यायः विद्वानों ने बाहु के दस भेद बताये हैं, जिनके नाम हैं : १. प्रसारित, २. अधोमुख, ३. ऊध्वंस्थ, ४. उद्वेष्टित, ५. अञ्चित, ६. स्वस्तिक, ७. मण्डलगति ८. तिर्यक्, ९. पृष्ठानुसारी और १० अपविद्ध। . कुञ्चितः सरलो नम्रो दोलितोत्सारितावपि । 378 प्राविद्धश्चेति षड् बाहूनन्यानन्ये जगुर्बुधाः ॥३७१॥ दूसरे विद्वानों ने बाहु के छह अन्य भेद बताये हैं । उनके नाम हैं : १. कुञ्चित, २. सरल, ३. नम, ४. दोलित, ५. उत्सारित और ६. आविद्ध । १. प्रसारित और उसका विनियोग प्रसरत्यग्रदेशे यो बाहुः स स्यात् प्रसारितः । .. 379 प्रादानेऽसौ फलादीनां याचनेऽपि नियुज्यते ॥३७२॥ जो बाहु आगे की ओर फैली रहती है वह प्रसारित कहलाती है। फल आदि के लेने और मांगने के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। २. अधोमुख प्रालिङ्गस्तु धरां बाहुरधोमुख उदोरितः ॥३७३॥ 380 पृथ्वी का आलिंगन करती हुई बाहु अधोमुख कहलाती है। ३. ऊर्ध्वस्त और उसका विनियोग शिरोदेशाद् व्रजन्नूर्ध्वमूर्ध्वगस्तुङ्गदर्शने ॥३७४॥ शिर से ऊपर को जाती हुई बाहु ऊर्ववस्थ कहलाती है। ऊँची चीज को देखने का भाव प्रदर्शित करने के लिए उसका विनियोग होता है। ४. उद्वेष्टित और उसका विनियोग निर्गम्य मणिबन्धाद्यो व्यावृत्ति पुनराश्रितः। 381 उद्वेष्टितो भुजोऽसौ स्यादभिमाना [दना] दरे ॥३७॥ जो बाहु कलाई से फैल कर पुनः पीछे की ओर मुड़ कर मणिबन्ध पर ही अवस्थित हो, वह उवेष्टित कहलाती है। अभिमान से (किसी का) अनादर करने का भाव दर्शाने में उसका विनियोग होता है। ५. अञ्चित और उसका विनियोग उरसः प्राप्य शीर्ष यो वक्षः पुनरुपाश्रितः । 382 स बाहुरश्चितः खेदे नियोज्यो नृत्यपण्डितैः ॥३७६॥
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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