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________________ अंग प्रत्यंग प्रकरण यदि बाह को दूसरे के पाश्र्व से हटाकर अपने पार्श्व में लाया जाय तो उसे उत्सारित कहते हैं। विद्वानों ने जन-समूह को दूर हटाने के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। १६. आविद्ध बाहुरभ्यन्तराक्षेपाद बुधराविद्ध ईरितः ॥३८७॥ 392 भीतर की ओर चलायी जाने वाली बाह को विद्वानों ने आविद्ध कहा है। चार प्रकार का उदराभिनय उदर के भेद क्षामं खल्लं तथा पूर्ण रिक्तपूर्णमिति क्रमात् । चतुर्बोदरमाख्यातमेतल्लक्ष्माधुनावे ॥३८॥ 393 उर के चार प्रकार बताये गये हैं : १. क्षाम, २. खल्ल, ३. पूर्ण और ४. रिक्तपूर्ण । १. क्षाम और उसका विनियोग नमनादुदरं. क्षामं वीरसिंहसुतोदितम् । [भवेत् तज्] जृम्भणे हास्ये निःश्वस्य रुदिते तथा ॥३८६॥ 394 अशोकमल्ल ने पिचके या दबे उदर को शाम कहा है। जम्हाई लेने, हँसने, लम्बी साँस लेने और रुदन के अभिनय में उसका विनियोग होता है। २. खल्ल और उसका विनियोग निम्नं खल्लं समाख्यातमातुरे श्रमकर्षिते । वेतालभृङ्गिरिट्यादिधारणे च क्षुधादिते ॥३६०॥ 395 फंसे हुए पेट को खल्ल कहा जाता है । रोगी, थके-माँदे, पिशाच ( वेताल ), शिव का गण (भृगी तथा रिटि) आदि का रूप धारण करने और प्यास के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. पूर्ण और उसका विनियोग प्राध्मातमुदरं पूर्ण भवेदत्यशिते त्विदम् । जलोदराभिधे व्याधौ तुन्दिलाभिनयेऽपि च ॥३६१॥ 396 फूला हुआ पेट पूर्ण कहलाता है। अधिक भोजन करने, जलोदर नामक रोग तथा तोंद वाले व्यक्ति के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ४. रिक्तपूर्ण और उसका विनियोग स्यादन्वर्थ रिक्तपूर्ण श्वासरोगे प्रकीर्तितम् ॥३६२॥ १३३
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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