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________________ नत्याध्यायः दोनों पाश्वों से किंचित् चलते हुए लक्षित होने वाली कटि को उद्ववाहिता कहते हैं। स्त्री की लीलागति (विलासपूर्वक चलने) के अभिनय में इस कटि का विनियोग होता है। ३. छिन्ना और उसका विनियोग मध्यस्य वलनाच्छिन्ना पात्रे तिर्यङमुखे मता। 351 व्यावृत्तप्रेक्षणादौ स्याद् व्यायामे सम्भ्रमेऽपि च ॥३४१॥ मध्य भाग से मुड़ी या धूमी हुई कटि को छिन्ना कहते हैं। तिरछे मुख वाले अभिनेता, घूमकर देखने आदि, व्यायाम और उत्तावलीपन के अभिनय में इस कटि का विनियोग होता है। ४. विवृत्ता और उसका विनियोग परागास्येन पात्रेण सम्मुखं या विवर्तिता । 352 सा विवृत्ता कटी धीरैः प्रयुक्ता विनिवर्त्तने ॥३४२॥ उलटा मुंह किये हुए पात्र द्वारा जो सामने की ओर घुमायी जाय उस कटि को विवृत्ता कहते हैं। धीर पुरुष लौटने के अभिनय में इस कटि का विनियोग करते हैं। ५. रेचिता और उसका विनियोग सर्वदिभ्रमणात्प्रोक्ता रेचिता भ्रमणे कटिः ॥३४३॥ 363 चारों ओर घूमने वाली कटि को रेचिता कहते हैं । भ्रमण के अभिनय में उसका विनियोग होता है । तेरह प्रकार का पदाभिनय पादाभिनय के भेद समाश्चितौ कुश्चिताख्यः सूच्यग्रतलसश्चरौ । उद्घट्टितस्तथा पादः षड्विधो मुनिना मतः ॥३४४॥ 354 भरत मुनि ने पादाभिनय के छह प्रकार बताये हैं, जिनके नाम हैं : १. सम, २. अञ्चित ३. कुञ्चित, ४. सूची, ५. अग्रतलसंचर और ६. उद्घटित । त्रोटितोद्धटितोत्सेको घट्टितो मर्दिताग्रगौ । पार्णिगः पार्श्वगोऽप्येवं पादोऽन्यः सप्तधोदितः ॥३४५॥ 355 अन्य आचार्यों ने पादाभिनय के सात भेद बताये हैं : १. नोटित, २. उद्घटितोत्सेक, ३. घट्टित, ४. मर्दित, ५. अग्रग, ६. पाष्णिग और ७. पार्श्वग । १२४
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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