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________________ अंग प्रत्यंग प्रकरण अथो तेषां लक्षणानि क्रमेणाहं ब्रवेऽधुना । अब मैं क्रमश: उनके लक्षण बताता हूँ। १. सम पाद और उसका विनियोग स्थितौ स्थितस्वभावेन समः पादः प्रकीर्तितः । 356 स्थिरः स्वभावाभिनये रेचकेऽसौ चलो मतः ॥३४६॥ प्रकृत रूप से भूमि पर अवस्थित पैरों को सम पाद कहा गया है। उसे स्वाभाविक अभिनय में स्थिर और रेचक अभिनय में चलायमान होना चाहिए । २. अञ्चित पाद और उसका विनियोग यो भूमिस्थितपाणिः सन्नुत्क्षिप्ताग्रतलस्ततः । 357 प्रसृताङ्गुलिकः पादः सोऽश्चितोऽभिहितस्तदा । पादाहतो तथा नानाभ्रमणादिषु कीर्तितः ॥३४७॥ 358 जिस पैर की एड़ी (पाष्णि) भूमि में हो, अग्रभाग उत्क्षिप्त हों और उँगुलियां फैली रहें, उसे अञ्चित कहते हैं। पैरों से मारने और अनेक प्रकार की भ्रमरी आदि के अभिनय में इस पाद का विनियोग होता है। ३. कुञ्चित पाद और उसका विनियोग उत्क्षिप्तपाष्णिराकुश्चन् मध्यो यः कुश्चिताङ्गुलिः । कुञ्चितोऽसावतिक्रान्तक्रमे तुङ्गाग्रहेऽपि च ॥३४८॥ 359 जिस पैर की एड़ी (पार्णि) ऊपर को उठी हो और मध्य भाग तथा उँगलियाँ सिकुड़ी ( कुञ्चित ) हों, वह कृश्चित पाद कहलाता है। अतिक्रान्त क्रम और उच्च ग्रह के अभिनय में इस पाद का विनियोग होता है। ४. सूची पाद और उसका विनियोग स्वाभाविको यदा वामोऽपरोऽङ्गुष्ठानभूस्थितः । समुत्क्षिप्तान्यभागोऽसौ सूची नपुरबन्धने ॥३४६॥ 360 जब बाँया पैर भूमि पर स्वाभाविक स्थिति में हो और दाहिना पैर अंगूठे के अग्रभाग में स्थित हो तथा उसका अन्य भाग ऊपर उठा हो, तब उसे सूची पाद कहते हैं । नूपुर बाँधने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। १२५
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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