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________________ हस्त प्रकरण जिस हाथ की (पाँचों) उँगलियाँ पार्श्वगत होकर वृद्याकार रूप में मुड़ी हुई और हथेली की ओर फैली हों, उसे अलपल्लव हस्त कहते हैं। अयमेवालपद्मः स्यादित्यन्येऽत्र बभाषिरे । 210 ता एव परिवत्तिन्यो भूत्वा व्यवत्तिता मताः ॥२०४॥ कुछ पूर्वाचार्यों ने अलपल्लव को ही अलपत्र नाम से कहा है, जिससे उसकी पार्श्वगत उँगलियाँ परिवर्तित होकर छितराये या अलग-अलग रूप में निदर्शित की गयी हैं। अयुक्तानृततुच्छोक्तो कस्य त्वमिति भाषणे । । नास्तीत्युक्तौ च नारीभिर्लोकयुक्त्यैष युज्यते ॥२०५॥ असंगत, मिथ्या तथा छोटी बात कहने, 'तुम किसके हो ?' ऐसा भाषण करने और 'नहीं है' इस तरह बोलने में अलपल्लव हस्त का विनियोग होता है। नारियों को चाहिए कि वे लोकरीति के अनुसार उसका प्रयोग करें। सर्वाप्प(?र्थ)ग्रहणे योज्यो वामहस्तेन पातितः । 212 अनुरूपे प्रसन्ने च विश्रान्तौ च गुणोत्तरे ॥२०६॥ विनष्टे च तथासत्ये शोभासंहर्षयोरपि । 213 केवले परितोषे च रसग्रहणयोरपि ॥२०७॥ मुधा विनार्थे सिंहे चावहिते नवभोगयोः । 214 क्रीडायामपि पर्याप्तेऽप्येष धीरैर्नियुज्यते ॥२०॥ सब प्रकार के अर्थों के ग्रहण में बाँये अलपल्लव हस्त को गिरा कर प्रयुक्त करना चाहिए। अनुरूप, प्रसन्न, विश्राम, गणश्रेष्ठ, विनष्ट, सत्य, शोभा, हर्ष, केवल, परितोष, रस, ग्रहण, व्यर्थ, सिंह, सावधान, नवीन, भोग, क्रीड़ा और पर्याप्त के अभिनय में भी धीर पुरुष इस हस्त का विनियोग करते हैं । लोकयुक्त्यनुसारेण साधौ त्वेष चलो मतः । 15 तारुणोऽसौ प्रसिद्ध स्याद्वक्षस्थस्त्वात्मदर्शने ॥२०॥ साधु के अभिनय में उक्त हस्त को कम्पित कर लोकरीति के अनुसार प्रयुक्त करना चाहिए। प्रसिद्ध वस्तु के अभिनय में यह हाथ सर्वथा उपयुक्त है । आत्मदर्शन के भाव-प्रदर्शन में उसे छाती पर रखना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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