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________________ नृत्याध्यायः देवेषु दक्षिणो वामबाहुःशीर्ष समुत्थितः । सुखे कर्णगतः कार्यो नवनीते त्वधोलुठन् ॥२१०॥ 216 देवताओं के अभिनय में दाँया अलपल्लव हस्त बाम बाहु या शिर पर रखना चाहिए। सुख के अभिनय में उसे कान के पास रखना चाहिए और मक्खन के भाव-प्रदर्शन में नीचे लुढ़का देना चाहिए। विशेषे तु चलावेतौ कान्तायां कुचदेशगौ। 217 किसी विशेष वस्तु या बात के अभिनय में दोनों अललपल्लव हस्तों को कम्पित कर प्रयक्त करना चाहिए और प्रिया के अभिनय में उन्हें कचों के पास रख देना चाहिए। ___ एवमन्ये बुधरुह्याः शास्त्रलोकानुसारतः ॥२११॥ नृत्तविद्या-विशारदों को चाहिए कि शास्त्र-दृष्टि और लोक-परम्परा के अनुसार वे अलपल्लव हस्त का अन्य अभिनयों में भी विनियोग करें। चौबीस असंयुत हस्तों का निरूपण समाप्त संयुत हस्त और उनका विनियोग १. अंजलि हस्त और उसका विनियोग तलश्लिष्टौ पताको चेत्तदा हस्तोऽञ्जलिर्मतः। 218 यदि दोनों पताक हस्तों के तल भाग को परस्पर जोड़ दिया जाय तो उसे अंजलि हस्त कहते हैं । देवताया द्विजातेश्च गुरोरपि नमस्कृतौ ॥२१२॥ शिरोवक्षोमुखस्थोऽयं क्रमात्पुंभिनियुज्यते । 219 कामिनीभिर्यथाकाममिति नृत्यविदां मतम् ॥२१३॥ देवता, ब्राह्मण तथा गुरु को नमस्कार करने में अंजलि हस्त को क्रमशः शिर, वक्ष और मुख पर प्रदर्शित करना चाहिए । नत्याचार्यों का अभिमत है कि पुरुषों और स्त्रियों को उसका यथेच्छा प्रयोग करना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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