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________________ नत्याध्यायः संध्याकाले पृथक्स्यातां मणिबन्धनताविमौ । 204 कुचयोः सम्मुखावेतौ काठिन्याभिनये करौ ॥१९८॥ संध्याकाल के अभिनय में दोनों पद्ममुख हस्तों की कलाइयों को अलग करके प्रदर्शित करना चाहिए; और कुचों की कठोरता के आशय में उन्हें सम्मुख रखकर दिखाना चाहिए। २३. ऊर्णनाभ हस्त और उसका विनियोग पद्मकोशस्य हस्तस्य पञ्चाङगुल्योऽपि कुश्चिताः । 205 यदा यत्र तदा स स्मादूर्णनाभाभिधः करः ॥१६॥ यदि पद्मकोश हस्त मुद्रा की पांचों उँगलियाँ मुड़ी हुई हों तो उसे ऊर्णनाभ हस्त कहते हैं। .. एष वस्तुग्रहे चौर्यात् पङ्काश्मादिग्रहेऽपि च । 206 कुछ(?ष्ठ) व्याधौ तथा शीर्षकण्डूयायां च कीर्तितः ॥२००॥ चोरी से किसी वस्तु को लेने, कीचड़ तथा लोहा आदि ग्रहण करने, कुष्ठरोग और शिर खुजलाने के अभिनय में ऊर्णनाभ हस्त का विनियोग करना चाहिए। उद्धृत्याधोमुखः कार्यो मण्डकाभिनये करः । 207 मण्डक (एक प्रकार की रोटी या माँड़; मण्डूक पाठ के अर्थ में मेंढक) के अभिनय में उक्त हस्त को ऊपर उठाकर अधोमुख कर देना चाहिए। विधायाधोमुखावेतौ नाभिदेशे प्रसारितौ ॥२०१॥ नीतोर्ध्वतर्जनीको चेत्तदान्त्रेषु नियोजितौ । 208 चिबुकस्थाविमौ कायौँ व्याघ्रसिंहादिदर्शने ॥२०२॥ यदि आँतों का अभिनय प्रदर्शित करना हो तो दोनों ऊर्णनाभ हस्तों की तर्जनियों को ऊर्ध्वमुख करके तथा दोनों हस्तों को अधोमुख करके नाभिदेश में फैला देना चाहिए। बाघ तथा सिंह आदि का भाव प्रकट करने में उनको ठुड्डी पर रखना चाहिए। २४. अलपल्लव हस्त और उसका विनियोग आवर्तिन्यः पार्श्वगता हस्तस्याङ्गुलयः स्थिताः ।। 209 तले यस्य विकीर्णाश्चेत्तदासावलपल्लवः ॥२०३॥ .
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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