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(७०) योगचिन्तामणिः। [पाकाधिकारः--
उदराणि तथा चाष्टौ शोफरोगानिहन्ति च । विंशतिं मेहजान् रोगान्पष्टिं नाडीव्रणानि च ॥६॥ हन्त्यष्टादश कुष्ठानिक्षयरोगांश्च सप्त च । पंचैव पाण्डरोगाणि पंच श्वासान्प्रणाशयेत् ॥ ७॥ चतुरो ग्रहणीरोगान्हद्रोगं च गलग्रहम् ॥ अनेकवातरोगाणि तानि सर्वाणि वारयेत् ॥ ८॥ शुक्लापाकेति विख्यातः सर्वरोगनिवारणे ॥ ९॥
नागपुरीययतिगणश्रीहर्षकीर्तिसंकलिते ।
वैद्यकसारोद्वारे प्रथमः पाकाधिकारोऽयम् ॥ १ ॥ - अरण्डीक छिलके दूर कर आठगुने दूधमें औटावे, जब दूध सूख जाय तब पीसकर घृत मिलाय पचावे. त्रिकुटा, लौंग, इलायची, पत्रज, तज, केशर, असगन्ध, सोवाके बीज, पीपलामूल, रेणुका, शतावर, सार, सांठकी जड, दारुहलदी, उशीर, जावित्री, जायफल, अभ्रक ये औषधि सब बराबर लेवे, सबका चूर्ण कर पीछे अवलेह करे जब शीतल होजाय तब सब औषधियोंकी बराबर खाण्ड डाले। यह वातारिनाम पाक है । इसको प्रातःकाल भक्षण करे तो अस्सी प्रकारके वातरोग, चालीस प्रकारके पित्तरोग, आठ प्रकारके उदरविकार, सूजन, बीस प्रकारक प्रमेह, साठ प्रकारके नाडीव्रण, अठारह प्रकारके कुष्ठ, सात प्रकारकी क्षय, पांच प्रकारके पाण्डुरोग, पांच प्रकारके श्वास, चार प्रकारकी संग्रहणी, हृदयरोग, गलग्रह, अनेक वादीके रोग इन सबको नष्ट करता है । यह शुक्लापाकनामसे विख्यात है, इसी प्रकार और भी, पाक वैद्य अपनी बुद्धिसे बना लेवे ॥ १-९॥ इति श्रीमाथुर दत्तरामचौवेकृत माथुरीमञ्जूषा भाषाटीकायां
पाकाधिकारः प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥
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