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________________ ( ६८ ) योगचिन्तामणिः [ पाकाधिकार : सर्वाङ्गसन्धिभने च वातजाशीतिरोगिणे । पथ्यो लशुनपाकोऽयं वर्णायुः - पुष्टिकारकः ॥ ६ ॥ लहसनकी दुर्गंध दूर करने के निमित्त रात्रिको छाछ में भिगोदे, प्रातःकाल छाछ में से निकालकर छिलका दूर कर पीसे फिर चौमुने दूधमें औटावे, जब खोवा होजाय तब घी ६४ टंक डाले | रास्ता, शतावर, अडूसा, गिलोय, कचूर, सोंठ, देवदारु, विधायरा, अजमायन, चित्रक, सांठकी जड, त्रिफला, पीपल, वायविडंग ये औषधि चार टंक लेवे, सबका चूर्ण कर पूर्वोक्त खोवामें मिलावे. सबकी बराबर मिश्री ले चासनी कर अवलेह बनावे, जब शीतल होजाय तब ६४ टंक शहद उसमें डाले तो यह लहसुनपाक बनकर तैयार होवे। यह पाक मन्दवात, हनुग्रह, आक्षेपकादि भग्नरोग, कमर ऊरु जकडना, हृदयका जकडना, सर्वागमें स्थित वात, संधियों में स्थित वात और अस्सी प्रकार के वातरोगको नष्ट करे, यह लहसनपाक पथ्यरूप है. वर्ण, आयु और पुष्टिका कर्ता है. अथवा घी तेल मिलाकर ले, सो ग्रन्थान्तरों में लिखा भी है. लहसनका तेल और घृत मिलाकर प्रातःकाल सूर्योदय के समय खानेसे विषमज्वर और वातके विकारको २ष्ट करे, बुढापे को दूर करे, इसके खानेसे मनुष्य कामदेव से भी अत्यन्त सुन्दर होवे ॥ १-६ ॥ स्त्री योग्य कसेलापाक | कसेलं कुडवं चैव घृतं देयं च तत्समम् । गोक्षीरमाढकं देयं पचेत्सम्यग्भिषग्वरः ॥ १ ॥ उत्तार्य च क्षिपेत्तत्र गुन्द्रकोलं पलद्वयम् । खण्ड प्रस्थद्वयं चैव पातिं कृत्वा क्षिपेत्पुनः ॥ २ ॥ व्योषं पाषाणभेदं च लोड़ जाती शतावरी । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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